पितृ पूजा एक पितृ पूजा, परिवार के पूर्वजों को समर्पित एक पवित्र हिंदू अनुष्ठान है जिसमें श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से पितृ आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है. इसे पितृ दिवस भी कहते हैं, और यह भारतीय संस्कृति में मृत्यु के बाद के कर्तव्य का प्रतीक है।
इसका मुख्य अर्थ है — पिता और पूर्वजों का आदर। जब कोई व्यक्ति देह त्याग देता है, तो उसकी आत्मा को शांति मिले, यही इस अनुष्ठान का उद्देश्य है। इसे श्राद्ध, पितृ पूजा के दौरान किया जाने वाला एक विशेष रिति है जिसमें ब्राह्मणों को भोजन देकर और तिल, जल और पिंड दान करके पूर्वजों को समर्पित किया जाता है कहते हैं। यह केवल एक धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव है। कई परिवारों में यह दिन बच्चों को पितृ मूल्यों का अनुभव कराने का मौका बनता है।
पितृ पूजा का समय पंचांग, हिंदू धर्म में तिथि, नक्षत्र और योग के आधार पर बनाया जाने वाला एक वार्षिक कैलेंडर है जो श्राद्ध, त्यौहार और शुभ कार्यों के लिए उपयोग किया जाता है के अनुसार निर्धारित होता है। भारत में यह मुख्य रूप से भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को, यानी पितृ तर्पण, पितृ आत्माओं को जल और तिल दान करके समर्पित करने की विधि है जिसे श्राद्ध के साथ जोड़कर किया जाता है के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा, कई राज्यों में अलग-अलग तिथियों पर भी यह अनुष्ठान किया जाता है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में यह बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि यह अनुष्ठान क्यों इतना महत्वपूर्ण है? इसका जवाब है — यह न सिर्फ़ धर्म का हिस्सा है, बल्कि समाज के बीच यादों और जिम्मेदारियों को बनाए रखने का एक तरीका है। जब आप अपने पितृजन के नाम पर एक तिल या एक गिलास पानी देते हैं, तो आप उनकी याद कर रहे होते हैं। आज के जमाने में जब लोग शहरों में रह रहे हैं और परिवार टूट रहा है, तो यह अनुष्ठान एक ऐसा जुड़ाव बन जाता है जो दिलों को जोड़ता है।
इस पेज पर आपको ऐसे ही ताज़ा और विश्वसनीय लेख मिलेंगे जो पितृ पूजा, श्राद्ध के नियम, पंचांग के अनुसार शुभ दिन, और विभिन्न राज्यों में इसकी अलग-अलग परंपराओं को उजागर करते हैं। कुछ लेख उन दिनों की जानकारी देते हैं जब श्राद्ध करना ज़रूरी होता है, कुछ में बताया गया है कि आधुनिक जीवन में इसे कैसे सरल बनाया जा सकता है। कुछ लेख तो ऐसे हैं जो बताते हैं कि एक छोटे से घर में भी कैसे पूरा श्राद्ध किया जा सकता है। यहाँ कोई भ्रम नहीं, कोई अंधविश्वास नहीं — बस सच्ची जानकारी।
मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 19-20 नवंबर को आयोजित होगी, जिस पर पितृ पूजा, तिल तर्पण और ब्राह्मण भोजन से पूर्वजों को शांति मिलती है। यह दिन पितृ दोष वालों के लिए विशेष रूप से शुभ है।
©2025 iipt.co.in. सर्वाधिकार सुरक्षित