जब नई दिल्ली के आसपास की आकाशगंगा रातों में चाँद का अंतिम चंद्रमा गायब हो जाएगा, तो लाखों हिंदू परिवार अपने पूर्वजों के नाम पर एक शांत अर्पण करेंगे। मार्गशीर्ष अमावस्या 2025 19 नवंबर को सुबह 9:43 बजे शुरू होगी और 20 नवंबर को दोपहर 12:16 बजे समाप्त होगी — यह समय नई दिल्ली के लिए अस्ट्रोसेज, ड्रिक पंचांग और टाइम्स ऑफ इंडिया के आधिकारिक पंचांग से लिया गया है। यह दिन केवल एक अमावस्या नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जुड़ाव है — जहाँ जीवित और मृत के बीच का तार फिर से बंधता है।
क्यों है यह अमावस्या इतनी खास?
मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन अमावस्या, मृगशिरा अमावस्या या दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। यह मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की पंद्रहवीं तिथि है, जो मृगशिर्ष नक्षत्र में पड़ती है — इसलिए इसे नक्षत्र के नाम पर भी जाना जाता है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि वे मार्गशीर्ष मास को सबसे पवित्र मानते हैं। इसलिए इस मास की अमावस्या का विशेष महत्व है। यह दिन न सिर्फ पितृ दोष वाले लोगों के लिए बचाव का समय है, बल्कि सभी के लिए आत्मशुद्धि और पूर्वजों की मुक्ति का अवसर है।
पूजा विधि: क्या करें, क्या न करें
इस दिन की पूजा विधि सरल पर प्रभावशाली है। सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदी, तालाब या सरोवर में स्नान करें। फिर तिल (सुन्है) के बीजों को बहते पानी में डालें — यह तिल तर्पण है, जिसे आध्यात्मिक दान माना जाता है। गायत्री मंत्र का जाप करें या भगवान नारायण का नाम लें। धूप, दीप और फूल चढ़ाकर भगवान शिव या विष्णु की पूजा करें — यह आपके परिवार की परंपरा पर निर्भर करता है।
अधिक शुभ कार्य के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित करें और उन्हें सात्विक भोजन, कपड़े और जूते दें। आर्थिक टाइम्स के अनुसार, इस दिन गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन देना भी अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। कौवे को अक्सर पितृ आत्माओं का प्रतीक माना जाता है — उनके लिए अन्न छोड़ना एक अनौपचारिक लेकिन गहरा संकेत है।
पितृ दोष और आध्यात्मिक बचाव
जिन लोगों के कुंडली में पितृ दोष है — जिसके कारण जीवन में अचानक बाधाएँ, आर्थिक संकट या स्वास्थ्य समस्याएँ आती हैं — वे इस अमावस्या को अपने लिए एक विशेष उपाय मानते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इस दिन किया गया पितृ पूजा और पिंड दान उनके दोष को कम करने में मदद करता है। अस्ट्रोसेज के पंचांग में लिखा है कि इस दिन का तर्पण न केवल पूर्वजों को शांति देता है, बल्कि जीवित व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्थिरता और आत्मिक शांति लाता है।
इस दिन का व्यापक प्रभाव
मार्गशीर्ष अमावस्या केवल एक रितिवार नहीं, बल्कि एक सामाजिक घटना है। गंगा घाटों पर लाखों लोग नहाने आते हैं। बाजारों में तिल, दीये, चना और भेंट वस्तुएँ की मांग बढ़ जाती है। गाँवों में यह दिन बड़े पैमाने पर परिवारों के एकत्र होने का दिन होता है — जहाँ बुजुर्ग पूर्वजों की कहानियाँ सुनाते हैं, और युवा सीखते हैं कि अतीत का सम्मान कैसे किया जाता है।
यह अमावस्या कार्तिक अमावस्या (21 अक्टूबर, 2025) के बाद आती है और पौष अमावस्या (19 दिसंबर, 2025) से पहले है। इसके अलावा, 20 नवंबर को अन्वाधान और गौरी तपोव्रत भी मनाया जाता है — जिसमें देवी पार्वती की पूजा की जाती है। यह दर्शाता है कि यह दिन केवल पितृ श्राद्ध तक सीमित नहीं, बल्कि एक संपूर्ण आध्यात्मिक सप्ताह का हिस्सा है।
अगले कदम: क्या बदल सकता है?
हालाँकि सभी पंचांग अमावस्या के समय में एक दो मिनट का अंतर दिखाते हैं — कुछ 9:43 AM, कुछ 9:45:09 AM बताते हैं — लेकिन सभी सहमत हैं कि यह दिन 19-20 नवंबर के बीच आता है। यह छोटा अंतर भौतिक गणना के आधार पर है, न कि आध्यात्मिक महत्व में। आने वाले वर्षों में, जब जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों का बहाव बदलता है, तो क्या तिल तर्पण की परंपरा बदल जाएगी? क्या शहरी युवा इस अमावस्या को अपनी जीवनशैली में शामिल कर पाएंगे? यह एक नया सवाल है — लेकिन इस दिन का भावनात्मक मूल्य अभी भी अटूट है।
पूर्वजों की याद कैसे जीवित रखें?
इस अमावस्या का असली अर्थ केवल रितिवार नहीं, बल्कि याद रखने का तरीका है। अगर आप नहीं जानते कि आपके पूर्वज कौन थे, तो भी एक दीप जलाएँ। एक चावल डालें एक बर्तन में। उनके नाम का जिक्र करें — यहाँ तक कि आप उनका नाम न जानते हों। इस तरह का अर्पण करना ही सच्ची पूजा है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितृ दोष कैसे दूर होता है?
मार्गशीर्ष अमावस्या पर पिंड दान, तिल तर्पण और ब्राह्मण भोजन से पितृ दोष के प्रभाव कम होते हैं। ये क्रियाएँ पूर्वजों की आत्माओं को शांति देती हैं, जिससे उनकी असंतुष्टि का कारण दूर हो जाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इस दिन किया गया श्राद्ध विशेष रूप से प्रभावी होता है क्योंकि मार्गशीर्ष मास को भगवान कृष्ण ने सबसे पवित्र बताया है।
अमावस्या पर तिल क्यों डाला जाता है?
तिल को अंधेरे और अज्ञात की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इसे बहते पानी में डालने से दुख, पाप और अशुभ ऊर्जा बह जाती है। अस्ट्रोसेज के अनुसार, तिल के बीजों में ऊष्मा और शक्ति होती है, जो पितृ आत्माओं को ऊर्जा प्रदान करती है। यह एक भौतिक दान है, जो आध्यात्मिक ऋण को चुकाता है।
क्या शहरों में भी इस दिन की पूजा करना संभव है?
हाँ, शहरों में भी यह पूजा संभव है। अगर नदी तक नहीं पहुँच सकते, तो घर में एक बर्तन में पानी भरकर उसमें तिल डालें और गायत्री मंत्र जपें। ब्राह्मणों को भोजन देने की जगह धर्म संस्थानों में दान कर सकते हैं। कौवे के लिए चावल छिड़कना भी एक विकल्प है। इसका मनोभाव ही महत्वपूर्ण है, न कि स्थान।
मार्गशीर्ष अमावस्या और कार्तिक अमावस्या में क्या अंतर है?
कार्तिक अमावस्या को दीपावली के बाद मनाया जाता है और इसे भगवान विष्णु की अवतार की याद में मनाया जाता है। वहीं मार्गशीर्ष अमावस्या केवल पितृ श्राद्ध पर केंद्रित है। यह अधिक व्यक्तिगत और पारिवारिक है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, मार्गशीर्ष मास को भगवान कृष्ण ने सर्वोत्तम माना है, इसलिए इसकी अमावस्या का प्रभाव गहरा होता है।
क्या इस दिन व्रत रखना जरूरी है?
व्रत रखना अनिवार्य नहीं है, लेकिन इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। अस्ट्रोसेज के अनुसार, इस दिन का उपवास सभी पापों को दूर करता है और आत्मिक शुद्धि लाता है। अगर आप व्रत नहीं रख सकते, तो कम से कम एक बार गायत्री मंत्र जपें और किसी को भोजन दें — यही पर्याप्त है।
क्या इस दिन नए काम शुरू करने के लिए शुभ है?
नहीं, इस दिन नए शुभ कार्यों की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। यह एक शांति और समर्पण का दिन है, न कि नए शुरुआत का। पंचांग में इसे 'अशुभ तिथि' माना जाता है। अगर आपका कोई लक्ष्य है, तो इसके बाद के दिन, जैसे शुक्रवार या सोमवार, उसे शुरू करें।