जब हम डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के द्विवार्षिक प्रधान मंत्री (2004‑2014) और प्रमुख अर्थशास्त्री. उनका नाम अक्सर मनमोहन सिंह के रूप में भी सुना जाता है, तो तुरंत एक स्थिर आर्थिक दृष्टिकोण और राजनैतिक सुदृढ़ता याद आती है। डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों को गति देने के साथ‑साथ सामाजिक समावेशी योजनाओं की नींव रखी। उनके कार्यकाल में कई प्रमुख संस्थाएं और नीतियां उभर कर सामने आईं, जो आज भी भारत की विकास कहानी को प्रभावित करती हैं।
एक प्रमुख संस्थान भारतीय अर्थव्यवस्था, वित्तीय, औद्योगिक और सेवाकेंद्रित राष्ट्रीय प्रणाली. इस प्रणाली में 2000‑के दशक के शुरुआती वर्षों में तेज़ी से बढ़त देखी गई, जिसे इंडियन इकॉनॉमी कहा जाता है। डॉ. सिंह की नीतियों ने इस उछाल को स्थिरता प्रदान की, जैसे कर सुधार, एक्सपोर्ट‑ओरिएंटेड ग्रोथ मॉडल और दूरस्थ क्षेत्रों के लिए वित्तीय समावेशन कार्यक्रम। आर्थिक विस्तार को साकार करने के लिए उन्होंने सार्वजनिक खर्च में पारदर्शिता और बजट प्रबंधन को भी नया रूप दिया।
वित्तीय नीति का दूसरा अभिन्न भाग रिपब्लिक बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI), भारत का मौद्रिक नीति नियामक और बैंकों का पर्यवेक्षक. डॉ. सिंह ने RBI के साथ मिलकर रेपो दर को 5.50% पर स्थिर रखा, जिससे ब्याज दरों में अनावश्यक उतार‑चढ़ाव रोचा गया। यह कदम फिक्स्ड‑इनकम और एसेट‑असाइनमेंट को सुरक्षित बनाता है, जिससे ऋणदाता और उधारकर्ता दोनों को भरोसा मिला। RBI के साथ उनके समन्वय ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया और विदेशी निवेश को आकर्षित करने में मदद की, जिससे भारतीय बाजार की विश्वसनीयता बढ़ी।
किसी भी आर्थिक ढांचे में नीति का अभिप्राय स्पष्ट होना चाहिए। यहाँ वित्तीय नीति, राजकोषीय और मौद्रिक उपायों का समन्वय. डॉ. सिंह ने वित्तीय नीति को सामाजिक लक्ष्य के साथ जोड़ा, जैसे बुनियादी सेवाओं में निवेश, ग्रामीण बुनियादी ढांचा और स्वास्थ्य देखभाल। इसके तहत जन धन योजना और माइक्रो‑क्रेडिट सुविधाओं का विस्तार किया गया। उनके नेतृत्व में वित्तीय नीति ने न सिर्फ आर्थिक विकास को तेज़ किया, बल्कि असमानताओं को घटाने की दिशा में भी कदम बढ़ाए।
राजनीतिक संदर्भ में भारतीय राजनीति, बहुदलीय प्रणाली, संसद और शासन संरचना. डॉ. सिंह ने संसद के दोभाषी निकाय—लोकसभा और राज्यसभा—के बीच संतुलित बहस को प्रोत्साहित किया। उन्होंने उदारीकरण के साथ सामाजिक न्याय को जोड़ते हुए कई विधायी उपाय पेश किए, जिससे नीति‑निर्माण में विशेषज्ञता और जनता के हित का समन्वय हो सका। उनका राजनैतिक शैली अक्सर शांत, विचारशील और डेटा‑आधारित बताई जाती है, जो नीति‑निर्धारण में विश्वसनीयता को बढ़ाती है।
नीचे आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों—बाजार, जलवायु, खेल और तकनीक—पर उनका असर परिलक्षित होता है। चाहे वो RBI के रेपो दर की स्थिरता हो, या भारत‑नेपाल सीमा पर पर्यावरण‑सुरक्षा उपाय, सभी में उनके आर्थिक सोच के प्रतिबिंब हैं। इस संग्रह में उन खबरों को पढ़कर आप समझ पाएंगे कि डॉ. सिंह की नीतियों की वास्तविक‑दुनिया में क्या‑क्या चमक है, और आज के निर्णय उन सिद्धांतों को कैसे आगे ले जा रहे हैं। आगे पढ़ते हुए आप विभिन्न लेखों में उनकी योगदान की गहरी झलक पाएंगे।
कर्नाटक विधानसभा ने बेंगलुरु सिटी यूनिवर्सिटी को ड्र. मनमोहन सिंह बेंगलुरु सिटी यूनिवर्सिटी के रूप में पुनः नामित करने का विधेयक पारित किया। यह कदम पूर्व प्रधानमंत्री के आर्थिक सुधारकार और बेंगलुरु के बुनियादी ढाँचे में उनके योगदान को सराहता है। विरोध पक्ष ने नए संस्थान की स्थापना की मांग की, पर सरकार ने कानून को मंजूरी दी। यह भारत की पहली विश्वविद्यालय है जिसका नाम ड्र. सिंह पर रखा गया है।
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