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RBI ने रेपो दर 5.50% पर बरकरार रखी, नीति स्थिर – मुंबई बैठक

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RBI ने रेपो दर 5.50% पर बरकरार रखी, नीति स्थिर – मुंबई बैठक
  • अक्तू॰, 1 2025
  • के द्वारा प्रकाशित किया गया Divya B

जब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 1 अक्टूबर 2025 को रेपो दर 5.50% पर बरकरार रखी, तो यह कदम पिछले वर्ष तीन‑तरफ़ी कट के बाद एक स्पष्ट ‘पॉज़’ संकेत रहा। यह निर्णय संचालक संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा लिया गया, जो मुंबई में तीन‑दिन की बैठकों के बाद आया। मुख्य रूप से, वैश्विक अनिश्चितताओं और अमेरिकी 50% टैरिफ के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने की इच्छा ने इस ‘न्यूट्रल’ स्थिति को जन्म दिया।

पिछले महीनों की पृष्ठभूमि

फरवरी 2025 से शुरू होकर RBI ने कुल मिलाकर 100 बेसिस पॉइंट की कटौती तीन चरणों में की थी, जिससे रेपो दर 6.50% से घट कर 5.50% तक आई। इस दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में सतत गिरावट देखी गई, जिससे महंगाई के दबाव में कमी का संकेत मिला। हालांकि, अगस्त के द्वि‑मासिक समीक्षा में बैंक ने मौजूदा दरों को बनाए रखने का फैसला किया, क्योंकि अमेरिकी टैरिफ और भू‑राजनीतिक तनावों का असर अभी स्पष्ट नहीं था।

वहीं, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 50% टैरिफ लगाया था, जिससे भारतीय निर्यातकों की लागत में अचानक उछाल आया। इस कारण वस्तु मूल्यों में संभावित वृद्धि को रोकने के लिए RBI ने सावधानी बरतने का इरादा जताया।

बैठक के मुख्य बिंदु और निर्णय

बुधवार को सुबह 10 बजे शुरू हुई बैठक में, MPC ने सभी प्रमुख नीति दरें अपरिवर्तित रखी: बैंक दर 5.75%, मार्जिनल स्टैंडिंग फसिलिटी (MSF) 5.75%, स्टैंडिंग डिपॉज़िट फसिलिटी (SDF) 5.25% और लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फसिलिटी (LAF) भी 5.25%। साथ ही, वेटेड एवैरेज कॉल रेट (WACR)मुंबई को ऑपरेटिंग टारगेट के रूप में फिर से पुष्टि किया गया।

संचालक संजय मल्होत्रा ने कहा, "हमने अभी तक मौद्रिक नीति में बदलाव नहीं किया है क्योंकि कीमतों में अभी भी कुछ अनिश्चितताएँ हैं, और हमें यह देखना है कि पहले की कटौती बैंकों और वास्तविक अर्थव्यवस्था तक कितनी प्रभावी रूप से पहुँचती है।" इसके अलावा, उन्होंने 7‑दिन की ऑपरेशन को प्राथमिकता देने का उल्लेख किया, जिससे मनी‑मार्केट दरों को बेहतर स्थिरता मिल सके।

बाजार एवं विश्लेषकों की प्रतिक्रियाएँ

CNBC‑TV18 ने बैठक से पहले एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें 80% विशेषज्ञों ने "कोई बदलाव नहीं" की उम्मीद जताई, जबकि 20% ने 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की भविष्यवाणी की। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने आधिकारिक रूप से 25 बेसिस पॉइंट की कटौती को "सबसे उपयुक्त विकल्प" कहा।

दूसरी ओर, बैंक ऑफ बारोडा के प्रमुख अर्थशास्त्री मदन सबनाविस ने कहा, "इन परिस्थितियों में हम ‘स्टेटस क्वो’ को ही उचित मानते हैं। निर्यातकों के लिए एक विशेष पैकेज और टैरिफ‑संबंधी राहत मिलने पर ही दर में बदलाव पर विचार किया जा सकता है।" इस प्रकार, विशेषज्ञों के बीच राय में विविधता स्पष्ट थी, परंतु सभी ने नीतिगत ‘न्यूट्रल’ स्थिति को स्वीकार किया।

आर्थिक प्रभाव और आगे की नजर

रेपो दर में स्थिरता का मतलब है कि ब्याज‑दर पर सीधे असर डालने वाले सभी साधनों – जैसे होम लोन, व्यापारिक क्रेडिट और फिक्स्ड डिपॉज़िट – के लिए इस समय में कोई नई तनाव नहीं होगा। इस कारण उपभोक्ता खर्च और निवेश योजना थोड़ी स्थिर रह सकती है। लेकिन ध्यान दें कि टैरिफ‑सम्बन्धी अनिश्चितताएँ अभी भी कीमतों को ऊपर धकेल सकती हैं, विशेषकर दवाई और एग्रो‑इनपुट्स में।

आगामी 4‑8 हफ्तों में प्रमुख संकेतकों को देखना ज़रूरी हो जाएगा: CPI की दिशा, खाद्य मूल्यों की गति, बैंकों की रिसेट नोटिस एवं FD शीट्स में परिवर्तन, साथ ही ग्लोबल टैरिफ‑नीति और अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की दिशा‑निर्देश। यदि ये संकेतक स्थिर या घटते दिखते हैं, तो RBI अगली बार कटौती पर विचार कर सकता है।

भविष्य की नीति दिशा

वर्तमान में विशेषज्ञों में टर्मिनल रेपो दर को लेकर दो‑तीन मतभेद हैं – 40% का मानना है कि यह 5.25% पर ठहर सकती है, जबकि 30% का अनुमान 5.50% और बाकी 30% 5.00% के आसपास रहेगा। अधिकांश (60%) को लगता है कि इस कट‑सीज़न का अंत अक्टूबर 2025 तक हो जाएगा, परन्तु कुछ का कहना है कि यह दिसंबर 2025 या अप्रैल 2026 तक भी चल सकता है।

रबि ने कहा, "हमने अभी तक नीति‑स्थान को नहीं बदला है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यह दर‑स्थिरता हमें आर्थिक विकास को समर्थन देने के लिए पर्याप्त स्थान देती है।" साथ ही, GST सुधार के कारण कीमतों में स्पष्ट कमी की उम्मीद है, परंतु बढ़ती मांग इसे संतुलित कर सकती है।

मुख्य बिंदु – संक्षिप्त सारांश

  • रेपो दर 5.50% पर स्थिर, सभी प्रमुख नीति‑दर अपरिवर्तित।
  • संचालक संजय मल्होत्रा ने ‘न्यूट्रल’ नीति‑स्थिति पर बल दिया।
  • वैश्विक टैरिफ और US‑India व्यापार तनाव प्रमुख जोखिम मानے गये।
  • विशेषज्ञ सर्वे में 80% ने निरंतरता की भविष्यवाणी की।
  • आगामी महीनों में CPI, खाद्य‑दर और वैश्विक नीति‑दिशा प्रमुख ट्रैकर होंगी।

Frequently Asked Questions

यह निर्णय भारतीय गृहस्थी पर कैसे असर डालेगा?

रेपो दर स्थिर रहने से फिक्स्ड डिपॉज़िट पर मौजूदा ब्याज‑दर ही रहेगा, जबकि होम लोन की ईएमआई में तेज़ी से कोई परिवर्तन नहीं दिखेगा। इस कारण घर के खर्च में तत्काल कोई बड़ी राहत नहीं मिलती, लेकिन अनिश्चित टैरिफ‑संकट के कारण संभावित वरियता से बचाव भी होगा।

क्या RBI अगले महीने दर में कटौती कर सकता है?

यदि CPI में दो‑तीन महीनों तक स्पष्ट गिरावट देखी गई और वैश्विक टैरिफ‑स्थिति में सुधार हुआ, तो RBI संभवतः अक्टूबर‑नवंबर में 25 बेसिस पॉइंट की छोटी कटौती पर विचार कर सकता है। लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक संकेत नहीं दिया गया है।

क्या US के टैरिफ का भारत की निर्यात पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा?

50% टैरिफ से कुछ सेक्टर, जैसे फार्मास्यूटिकल्स और टेक‑उत्पाद, में लागत में वृद्धि होगी और प्रतियोगी देशों को लाभ मिलेगा। दीर्घकाल में यह भारत के निर्यात‑आधार को बदल सकता है, जिससे मौद्रिक नीति पर भी असर पड़ सकता है।

GST सुधार से मुद्रास्फीति पर क्या असर पड़ेगा?

GST की दरों में तर्कसंगत पुनरावृत्ति से कर‑संकट कम होगा और वस्तु मूल्यों में स्थिरता आएगी। इस कदम को RBI ने महंगाई नियंत्रण में मददगार माना है, हालांकि अधिक मांग के कारण कीमतें फिर भी ऊपर‑नीचे हो सकती हैं।

MPC की भविष्य की नीति‑स्थिति क्या होगी?

MPC ने अपनी ‘न्यूट्रल’ स्थिति को बनाए रखा है। विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक वैश्विक टैरिफ‑द्वन्द्व और खाने‑पीने की कीमतें स्थिर नहीं होतीं, तब तक और कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखेगा। अगली बैठक में संभवतः इन संकेतकों की पुनः जाँच होगी।

Divya B
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Divya B

19 टिप्पणियाँ

Maneesh Rajput Thakur

Maneesh Rajput Thakur

RBI ने रेपो दर को 5.50% पर स्थिर रखी, यह बताता है कि बाज़ार में अभी भी अनिश्चितता का माहौल है। पिछले साल की तीव्र कटौती के बाद अब नीति निर्माताओं ने एक सीमित pause ले ली है। वैश्विक टैरिफ तनाव और अमेरिकी फेड की दिशा को देखते हुए यह एक सुरक्षित कदम है। घरेलू महंगाई में धीमी गिरावट और खाद्य मूल्य स्थिरता ने भी इस निर्णय को समर्थन दिया। इस पर बहुत सारे बाजार विश्लेषक आशावादी हैं, परन्तु सावधानी भी बरतनी चाहिए।

ONE AGRI

ONE AGRI

देश की आर्थिक आत्मा को संभालते हुए RBI ने इस समय में रेपो दर को बरकरार रखा, यह दिखाता है कि हमें अपनी माँ-बा के बना-रहने वाले रक्षात्मक कदमों पर गर्व होना चाहिए। विदेशी टैरिफ़ के दबाव को देखकर हमें अपने राष्ट्रीय उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए और भी कड़े नीतियों की जरूरत है। हमारी फ़ॉर्मूला में राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ आर्थिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस पॉलिसी के साथ आम जनता को भी अपना भरोसा बनाए रखना होगा, varna फिकर की बात है। इस राष्ट्रीय भावना को समझते हुए हमें समान दिशा में काम करना चाहिए।

Himanshu Sanduja

Himanshu Sanduja

सभी को नमस्ते, मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ। RBI का यह कदम हमें थोड़ा समय देगा ताकि हम अस्थायी आर्थिक झटकों से बाहर निकल सकें। आशा है कि आगे की बैठकों में भी यह सतर्क रवैया बना रहेगा।

Kiran Singh

Kiran Singh

भाईसाहब रेपो दर स्थिर, अच्छा है! 👍

Balaji Srinivasan

Balaji Srinivasan

अच्छा रहा, दर में कोई झटका नहीं मिला।

Hariprasath P

Hariprasath P

देखो भाई लोग, RBI ने फिर से रेपो दर को 5.50% पर रख दिया है, और कौन समझेगा इस खेल को? हम तो कहेंगे कि यह एकदम strategic move है, क्यूंकि अभी global market में कोई certainty नहीं है। थोड़ी स्याही की तरह, ये decision हमारे economy के लिये ek buffer बनता है। टैरिफ तो जैसे चाकू की धारा है, हम इसको काटने से पहले एक time window ले रहे हैं। आगे पढ़ते रहो, क्योंकि policy ka real impact तो तब दिखेगा जब data पुन: सामने आएगा।

Vibhor Jain

Vibhor Jain

हूँ, ये तो बस एक और status quo है।

Rashi Nirmaan

Rashi Nirmaan

जब RBI ने दर को स्थिर रखा, तो यह स्पष्ट संकेत है कि राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी जा रही है। विदेशियों के टैरिफ के इस दबाव में हमें अपना स्वर नहीं खोना चाहिए। नीति निर्माताओं को न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक स्थिरता पर भी ध्यान देना चाहिए। इस दृढ़ता से हमारे युवा वर्ग को भी आशा मिलेगी। अंततः, यह कदम आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में एक सकारात्मक दिशा-निर्देश है।

Govind Kumar

Govind Kumar

सभी का इस दिशा में समर्थन सराहनीय है। RBI की यह स्थिरता हमारे वित्तीय प्रणाली को संतुलित रखेगी। हमें इस नीति के साथ धैर्य रखना होगा और आगे के संकेतों पर नजर रखनी चाहिए। आशा है, अगले क्वार्टर में हमें बेहतर डेटा मिलेगा।

Shubham Abhang

Shubham Abhang

देखिए, RBI ने रेपो दर को स्थिर रखा, यह एक रणनीति के रूप में देखा जा सकता है! लेकिन, क्या यह वास्तव में भौतिक अर्थव्यवस्था के लिये पर्याप्त है?, सरकार को इस पर पुनः विचार करना चाहिए। टैरिफ के प्रभाव को देखे बिना, यह निर्णय बहुत ही जोखिम भरा लग रहा है। निश्चित रूप से, कुछ हद तक यह निर्णय समर्थनीय है,, परंतु आगे की दिशा अभी अस्पष्ट है।

Trupti Jain

Trupti Jain

भाई, यह ठीक ही होगा, पर बहुत ज़्यादा देर नहीं होना चाहिए। हमें जल्दी‑जल्दी परिणाम देखना है। वरना बोरिंग बात बन जाएगी।

deepika balodi

deepika balodi

क्या RBI इस स्थिरता से भारतीय निर्यात को बचा पाएगा?

Priya Patil

Priya Patil

सही कहा, अभी के लिए ये कदम समझदारी भरा है। यह हमें आर्थिक शांति प्रदान करेगा और अनिश्चितता को कम करेगा। साथ ही, यह नीति निर्माता को समय देती है ताकि वे आगे के डेटा का सही विश्लेषण कर सकें।

Rashi Jaiswal

Rashi Jaiswal

भाई, RBI ने जो फैसला किया है, वो कुछ हद तक बेस्ट मोमेंट है। हम सबको मिलकर इस स्थिरता का जश्न मनाना चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं, हमारी अर्थव्यवस्था में अभी भी कई चुनौतियां हैं, पर यह निर्णय हमें थोड़ा आराम देगा। आशा है कि आगे भी ऐसी ही सकारात्मक खबरें आती रहें। साथियों, चलो इस पर एक सकारात्मक नजर रखते हैं!

Ashutosh Kumar Gupta

Ashutosh Kumar Gupta

हम्म, लगता है RBI ने बस वही किया जो सबको उम्मीद थी। कोई नया नहीं, सिर्फ वही पुराना टेक्निक।

fatima blakemore

fatima blakemore

RBI की इस नीति को समझते हुए मैं एक गहरी दार्शनिक सोच में खो गया हूँ।
जब हम रेपो दर जैसी मौद्रिक नीति के छोटे‑छोटे परिवर्तन को देखते हैं, तो वह हमारे सामाजिक संरचना की धड़कन को भी दर्शाता है।
डॉलर की ताकत, टैरिफ का दबाव, और हमारी घरेलू कीमतें सभी एक ही नज़रों में घुलते‑मिलते हैं।
ऐसी स्थिति में स्थिरता को एक 'pause' कहना भी शायद सही है, क्योंकि वास्तव में यह एक अस्थायी श्वास जैसा है।
हमारी अर्थव्यवस्था जैसे एक जीव है जिसे निरंतर ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है, पर कभी‑कभी उसका हल्का‑सांस लेना भी आवश्यक होता है।
वैश्विक अनिश्चितता को देखते हुए RBI ने एक सतर्क पुश‑बैक दिया है, जो कि हमारे निवेशकों को आश्वासन देता है।
यदि हम इस समय को सही ढंग से उपयोग करें, तो यह हमारे वित्तीय बुनियादी ढाँचे को मज़बूत कर सकता है।
दूसरी ओर, टैरिफ के चलते आयात की लागत बढ़ने से महंगाई में पुनः वृद्धि हो सकती है।
यह बदलाव हमारे छोटे‑छोटे उपभोक्ताओं के जीवन को भी प्रभावित करता है, विशेषकर दवाई और एग्रो‑इनपुट्स की कीमतों में।
इसलिए, नीति‑निर्माताओं को यह संतुलन समझना होगा कि स्थिरता और विकास दोनों का ध्यान रखें।
समय के साथ, अगर CPI और खाद्य कीमतें नीचे आएँ, तो RBI अगली बार दर में कटौती पर विचार कर सकता है।
पर वर्तमान में, यह 'status quo' हमें आर्थिक शोक़ की चक्रवृद्धि से बचाता है।
हमारे किसान, व्यापारी, और आम घर के लोग इस निर्णय से कुछ हद तक लाभान्वित हो सकते हैं।
अन्त में, यह नीति एक क्षणिक विराम है, पर इसकी महत्ता दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिये बहुत बड़ी है।
चलो, इस मौके का प्रयोग करके हम अपने व्यक्तिगत और सामूहिक वित्तीय योजना को दोबारा देखते हैं।

vikash kumar

vikash kumar

RBI की इस स्थिरता को एक अत्यंत सटीक आर्थिक समायोजन के रूप में देखा जा सकता है। यह निर्णय विदेशी टैरिफ जोखिम को कम करने का लक्ष्य रखता है, साथ ही घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करता है। मौद्रिक नीति में इस प्रकार का संतुलन आवश्यक है। आगे के आँकड़े इस दिशा को पुष्टि करेंगे।

Anurag Narayan Rai

Anurag Narayan Rai

RBI की रेपो दर को 5.50% पर स्थिर रखने का निर्णय न केवल एक मौद्रिक संकेत है, बल्कि यह हमारे आर्थिक माहौल में कई सूक्ष्म पहलुओं को प्रतिबिंबित करता है। सबसे पहले, यह दर्शाता है कि केंद्रीय बैंक अभी भी निरंतरता की चाह रखता है, जिससे बाजार में अस्थिरता कम हो। दूसरा, यह संकेत देता है कि टैरिफ त्रासदी और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता को देखते हुए RBI ने जोखिम को नियंत्रण में रखने को प्राथमिकता दी है। तीसरी बात, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में निरंतर गिरावट इस नीति के समर्थन में एक मजबूत आधार बनती है। इसके अलावा, मौजूदा नीति‑दर जैसे बैंक दर और स्टैंडिंग डिपॉज़िट फ़ैसिलिटी को अपरिवर्तित रखने से मौद्रिक प्रणाली में संतुलन बना रहता है। इस बीच, बाजार विशेषज्ञों ने भी इस “कोई बदलाव नहीं” के इशारे को सराहा है, जो संकेत देता है कि संस्था के भीतर एकजुटता है। फिर भी, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस स्थिरता का प्रभाव दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर भी पड़ेगा, विशेषकर होम लोन, फिक्स्ड डिपॉज़िट जैसी व्यक्तिगत वित्तीय उत्पादों पर। अंत में, यदि CPI में निरंतर गिरावट और वैश्विक टैरिफ स्थिति में सुधार दिखता है, तो अगले चरण में संतुलन के बाद संभावित दर कटौती का दायरा खुल सकता है।

Sandhya Mohan

Sandhya Mohan

बहुत अच्छे बिंदु, धन्यवाद। इस चर्चा से बहुत कुछ सीखने को मिला।

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