जब Santosh Lad, Labour Minister of Karnataka Government ने 24 जुलाई 2024 को Bengaluru स्थित Karnataka Legislative Assembly में घोषणा की, तो सभी ध्यान इस ओर गया कि राज्य अब अनुबंधित कर्मचारियों को सीधे जिले के उपकमिश्नर‑हेडेड सोसाइटीज के माध्यम से नियुक्त करेगा, जिससे 54,405 कर्मियों की वेतन‑भुगतान में मध्यस्थ एजेंसियों को बाहर रखा जाएगा। साथ ही, वही दिन 4 जून 2024 को पारित हुए Karnataka Platform‑Based Gig Workers (Social Security and Welfare) Bill, 2025Bengaluru ने लगभग 4 लाख गिग श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन दिया। यह दो‑स्तरीय पहल कर्नाटक के श्रमिक कल्याण को नई दिशा दे रही है।
अनुबंधित कर्मचारियों के लिए जिला‑स्तरीय सोसाइटीज का निर्माण
लाद ने बताया कि वर्तमान में राज्य में 405 निजी भर्ती एजेंसियों द्वारा विभिन्न विभागों में 54,405 अनुबंधित कर्मचारी काम कर रहे हैं। इस प्रणाली में अक्सर वेतन‑देरी, लाभ‑भुगतान में गड़बड़ी और असमान व्यवहार की शिकायतें आती थीं। इसलिए, Karnataka State Unorganised Workers Social Security Board के सहयोग से प्रत्येक जिले में Deputy Commissioner के नेतृत्व में सोसाइटी स्थापित की जाएगी।
- सोसाइटी सीधे कर्मचारियों को अनुबंधित करेगी और वेतन सरकारी खाते से सीधे ट्रांसफर होगा।
- बिना किसी एजेंट या बिचौलिए के, कर्मचारियों को समय पर तथा पूर्ण वेतन मिलेगा।
- रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के बाद प्रत्येक कर्मचारी को स्मार्ट‑कार्ड जारी किया जाएगा, जिससे भविष्य में सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुंच आसान होगी।
दो दिवसीय कार्यक्रम में Adyar Garden Hall, Mangalore में लाद ने इस योजना की विस्तृत रूपरेखा पेश की और कई अनौपचारिक श्रमिक वर्गों को कार्ड वितरित किया।
गिग वर्कर्स (सामाजिक सुरक्षा) बिल – क्या बदल रहा है?
इस बिल में ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से खाद्य, किराना, लॉजिस्टिक्स, स्वास्थ्य, ट्रैवल आदि सेवाएँ प्रदान करने वाले श्रमिकों को ‘गिग वर्कर’ मानकर सामाजिक सुरक्षा लाभ—जैसे स्वास्थ्य बीमा, कार्यस्थल सुरक्षा, ग्रैच्युइटी—प्रदान किए जाएंगे। नियमानुसार, प्रत्येक प्लेटफ़ॉर्म (एग्रीगेटर) को वार्षिक फंड में योगदान देना होगा, जिसका निर्धारण Gig Workers Welfare Board करेगा। बोर्ड में चार प्रतिनिधि श्रमिकों के, दो प्रतिनिधि एग्रीगेटर्स के और दो सिविल सोसाइटी के रहने वाले होंगे।
संविदा में एग्रीगेटर्स को ग्राहक से 1%‑5% तक ‘वेलफ़ेयर फ़ी’ एकत्र करने की अनुमति है, जो तिमाही आधार पर फंड में जमा की जाएगी। इस व्यवस्था से राज्य में लगभग 4 लाख गिग श्रमिकों को सीधे लाभ पहुंचाने का लक्ष्य है।
विरोधी दलों की प्रतिक्रियाएँ और व्यावहारिक चुनौतियाँ
बिल पर चर्चा के दौरान Arvind Bellad, Deputy Opposition Leader ने कहा, “2029‑30 तक देश में 2.5 करोड़ गिग वर्कर हो सकते हैं, और कर्नाटक इस दिशा में अग्रणी बन रहा है।” दूसरी ओर, बीजेपी के Suresh Kumar ने प्रस्ताव रखा कि आउटसोर्स्ड कर्मचारियों को भी इस बिल में शामिल किया जाए, पर लाद ने स्पष्ट किया, “वे गिग वर्कर की परिभाषा में नहीं आते।”
विधायी प्रक्रिया में अभी कुछ बिंदु स्पष्ट नहीं हैं, जैसे फंड में एग्रीगेटर्स का योगदान कैसे तय होगा, तथा स्मार्ट‑कार्ड की सुरक्षा और डेटा‑प्राइवेसी को कैसे सुनिश्चित किया जाएगा।
कर्नाटक के शिल्पकारों और छोटे उद्योगों के लिए अतिरिक्त योजनाएँ
लाद ने Ashadeepa Scheme का भी उल्लेख किया, जो SC/ST द्वारा चलाए जाने वाले छोटे एवं मध्यम उद्यमों को 50% वेतन सब्सिडी देता है। अब तक 7,000 लाभार्थियों को 7.5 लाख रुपये हर साल का सब्सिडी मिल रहा है। इस योजना से न केवल श्रमिकों की आय बढ़ेगी, बल्कि औद्योगिक विकास को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
भविष्य की दिशा और राष्ट्रीय प्रभाव
कर्नाटक की यह दो‑पहल प्रांत‑स्तर के सबसे व्यापक श्रमिक‑कल्याण प्रयासों में गिनी जा रही है। अन्य राज्यों—जैसे बिहार, राजस्थान—और कुछ एशिया‑प्रशांत देशों ने भी समान विधायिकाएँ अपनाई हैं, लेकिन कर्नाटक का मॉडल विशेष रूप से दो‑स्तरीय संरचना (डिप्टी कमिश्नर‑सोसाइटी और गिग वर्कर्स वेलफ़ेयर बोर्ड) के कारण राष्ट्रीय स्तर पर पुनरावृत्ति के योग्य माना जा रहा है। NITI Aayog के डेटा के अनुसार, 2029‑30 तक भारत में लगभग 2.5 करोड़ गिग कार्यकर्ता होंगे, जिससे इस बात का अंदाजा मिलता है कि कर्नाटक की पहल का प्रभाव व्यापक रहेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
डिप्टी कमिश्नर‑हेडेड सोसाइटी कैसे काम करेगी?
सोसाइटी प्रत्येक जिले में स्थापित होगी, जहाँ डिप्टी कमिश्नर भर्ती, वेतन भुगतान और कर्मचारियों के福利 को सीधे नियंत्रित करेंगे। एजेंसियों को बिचौलिए के रूप में हटाकर वेतन सरकारी खाते से ट्रांसफर किया जाएगा, जिससे देरी घटेगी।
गिग वर्कर्स को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा में क्या शामिल है?
बिल के तहत स्वास्थ्य बीमा, वार्षिक ग्रैच्युइटी, कार्यस्थल सुरक्षा प्रशिक्षण और दुर्घटना बीमा जैसे लाभ शामिल हैं। एग्रीगेटर्स को फंड में योगदान देना होगा, जिससे ये सुविधाएँ श्रमिकों को उपलब्ध होंगी।
क्या सभी आउटसोर्स्ड कर्मचारियों को इस योजना से बाहर रखा गया है?
हां, वर्तमान बिल में केवल प्लेटफ़ॉर्म‑आधारित गिग कार्यकर्ताओं को ही परिभाषित किया गया है। परंपरागत आउटसोर्स्ड कर्मचारियों के लिए अलग से सोसाइटी‑आधारित व्यवस्था बनाई जा रही है, जिससे उन्हें भी प्रत्यक्ष वेतन और लाभ मिलेंगे।
स्मार्ट‑कार्ड का उद्देश्य क्या है?
स्मार्ट‑कार्ड प्रत्येक अनौपचारिक श्रमिक को पहचान पत्र के रूप में देगा। यह फंड में भागीदारी, सामाजिक सुरक्षा लाभ, और भविष्य में पेंशन या ग्रैच्युइटी जैसी सुविधाओं को ट्रैक करने में मदद करेगा।
अगले कदम कौन‑से हैं?
डिप्टी कमिश्नर‑सोसाइटीज़ का लॉन्च जल्द ही शुरू होगा, साथ ही गिग वर्कर्स वेलफ़ेयर बोर्ड के सदस्य नियुक्त किए जाएंगे। दोनों पहल के विस्तृत नियम अगले महीने के भीतर प्रकाशित होने की संभावना है।
12 टिप्पणियाँ
varun spike
कर्नाटक सरकार ने अनुबंधित कर्मचारियों के लिए जिला‑स्तरीय सोसाइटी मॉडल पेश किया है। इससे मध्यस्थ एजेंसियों को बाहर करके वेतन का सीधा सरकारी ट्रांसफर सुनिश्चित होगा। साथ ही स्मार्ट‑कार्ड प्रणाली भविष्य में सामाजिक सुरक्षा लाभों को आसान बना देगी। इस पहल की सफलता के लिए कार्यान्वयन प्रक्रिया में पारदर्शिता महत्वपूर्ण होगी।
Chandan Pal
वाह भाई 😃 लद्दा ने जो बताया वो बिल्कुल सही लग रहा है! बिना बिचौलियों के पेमेंट मिलना सबको खुश करेगा 🙌
SIDDHARTH CHELLADURAI
यह कदम श्रमिकों के भरोसे को बढ़ाएगा 😊 सरकार को ऐसे और योजनाएँ लेकर आते रहना चाहिए।
Deepak Verma
देखो, योजना अच्छी है पर जमीन पर लागू करने में दिक्कतें आ सकती हैं।
Rani Muker
सच में, अगर रजिस्ट्री और स्मार्ट‑कार्ड की सुरक्षा ठीक से नहीं बनी तो डेटा लीक की समस्या होगी। हमें इस बात को भी देखना चाहिए।
Hansraj Surti
कर्नाटक का यह दो‑स्तरीय मॉडल, सामाजिक सुरक्षा के इतिहास में एक उल्लेखनीय मोड़ है।
डिप्टी कमिश्नर‑हेडेड सोसाइटी का गठन, प्रशासनिक इष्टता को नई दिशा देगा।
स्मार्ट‑कार्ड द्वारा प्रत्येक अनौपचारिक कार्यकर्ता को पहचान प्रदान करना, भविष्य में पेंशन और ग्रैच्युइटी जैसी सुविधाओं का द्वार खोल सकता है।
गिग वर्कर्स को स्वास्थ्य बीमा तथा कार्यस्थल सुरक्षा प्रशिक्षण देना, उनके जीवन स्तर को सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
एग्रीगेटर्स द्वारा फंड में योगदान, सामाजिक सुरक्षा के वित्तीय आधार को स्थिर बनाएगा।
वेलफ़ेयर फ़ी की सीमा 1%‑5% होने का निर्णय, प्लेटफ़ॉर्मों की आय को बहुत अधिक प्रभावित नहीं करेगा।
ऐसे नियम, यदि सही ढंग से लागू हों, तो शोषण की सम्भावनाओं को न्यूनतम रखेंगे।
कुल मिलाकर, यह विधेयक भारत के उद्यमी‑श्रमिक संतुलन को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकता है।
परंतु, अधिनियम के अनुप्रयोग में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ स्पष्ट हैं।
डेटा‑प्राइवेसी का प्रश्न, विशेष रूप से स्मार्ट‑कार्ड के उपयोग में, अत्यंत संवेदनशील है।
जब तक एग्रीगेटर्स के योगदान की गणना स्पष्ट नहीं होगी, फंड की पर्याप्तता पर संदेह रहेगा।
स्थानीय स्तर पर सोसाइटी की कार्यक्षमता, डिप्टी कमिश्नर की निगरानी पर निर्भर करेगी।
यदि बिचौलिए को पूरी तरह हटाया गया, तो कुछ छोटे एजेंटों की नौकरियों पर प्रभाव पड़ेगा।
किसी भी नियामक परिवर्तन का सामाजिक प्रभाव, राजनैतिक समझौतों के बिना नहीं देखा जा सकता।
भविष्य में इस मॉडल को अन्य राज्यों में अपनाने के लिए, स्पष्ट और पारदर्शी मूल्यांकन आवश्यक होगा।
अंततः, कर्नाटक की यह पहल, अगर सुदृढ़ कार्यान्वयन के साथ जारी रही, तो राष्ट्रीय स्तर पर एक मानक बन सकती है।
Naman Patidar
हां, लेकिन फंड के हिसाब‑किताब को खुले तौर पर दिखाना जरूरी है।
Anil Puri
ये सब तो बकवास है, सरकार बस वोटों के लिए दिखावा कर रही है।
poornima khot
सच्चाई यह है कि नीतियां केवल इलेक्ट्रो-पोलिटिकल पब्लिसिटी के लिये नहीं, बल्कि वास्तविक जनकल्याण के लिये बनायी जाती हैं। हालांकि, कार्यान्वयन में कई बार लापरवाही देखी गयी है। हमें नीतियों की गहराई में जाना होगा।
Mukesh Yadav
देश के अंदर के ये स्कीम तो बस विदेशी एजेंटों को रोकने का बहाना हैं, असली मकसद हमारी आज़ादी को चुराना है।
Yogitha Priya
ऐसे विचारों से समाज में वैर बढ़ता है, हमें मिलजुल कर काम करना चाहिए, न कि अंधविश्वास फैलाना चाहिए।
Rajesh kumar
इसे रोकना अब संभव नहीं है।