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राहुल गांधी ने SIR को 'अनिवार्य उत्पीड़न' कहा, 16 BLO की मौत का आरोप लगाया

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राहुल गांधी ने SIR को 'अनिवार्य उत्पीड़न' कहा, 16 BLO की मौत का आरोप लगाया
  • नव॰, 24 2025
  • के द्वारा प्रकाशित किया गया Divya B

जब राहुल गांधी ने 23 नवंबर, 2025 को एक हिंदी पोस्ट में लिखा कि "यह कोई अक्षमता नहीं, एक साजिश है," तो भारत के चुनाव प्रणाली के अंदर एक गहरा दरार उजागर हो गया। तीन हफ्ते में 16 बूथ स्तरीय अधिकारी (BLO) की मौत हो गई — कुछ दिल का दौरा, कुछ आत्महत्या, सबके पीछे एक ही कारण: अत्यधिक कार्यभार। चुनाव आयोग ऑफ इंडिया (ECI) की विशेष तीव्र समीक्षा (SIR) अभियान के तहत लाखों मतदाता विवरणों की नवीनीकरण की जा रही है, लेकिन इसकी कीमत किसने चुकाई? वो वो लोग जो घर-घर जाकर डेटा एकत्र करते हैं। बिना डिजिटल सिस्टम के, बिना कोई सहायता के, बस एक फाइल और एक कलम के साथ।

"कागजों का जंगल", न कि डिजिटल भारत

राहुल गांधी ने कहा कि भारत दुनिया के लिए उन्नत सॉफ्टवेयर बनाता है, लेकिन चुनाव आयोग अभी भी 22 साल पुरानी मतदाता सूचियों के हजारों पन्नों को उलट रहा है। "क्या हम इतने पिछड़ गए हैं?" उन्होंने प्रश्न उठाया। उनका आरोप है कि SIR का उद्देश्य मतदाताओं को थका देना है — जिससे सच्चे मतदाता अपने अधिकारों के लिए लड़ना छोड़ दें, और फिर वो जो चाहते हैं, वो नाम जोड़ दें। उन्होंने इसे "मत चोरी" का ढंग बताया।

वास्तव में, जब एक मतदाता को एक नया नाम जोड़ने के लिए अपनी पुरानी सूची के 200 पन्ने खोजने पड़ते हैं, तो वह बस हाथ उठा देता है। और वहीं, किसी और का नाम बिना किसी प्रमाण के जोड़ दिया जाता है। राहुल ने यह भी कहा कि अगर ECI सच में पारदर्शिता चाहता है, तो यह सूची ऑनलाइन, सर्चेबल, और मशीन-रीडेबल होनी चाहिए — न कि एक तिल भर भी नहीं बदली 22 साल की फाइलों के ढेर के रूप में।

राज्यों की प्रतिक्रिया: ममता और खरगे ने भी उठाई आवाज

केंद्रीय आयोग के खिलाफ आवाज़ें अब सिर्फ कांग्रेस तक सीमित नहीं हैं। ममता बनर्जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, ने तुरंत SIR को रोकने की मांग की। उन्होंने कहा, "यह अभियान न केवल जनता को थका रहा है, बल्कि अधिकारियों को मार रहा है।"

उसी दिन, मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस अध्यक्ष, ने SIR की तुलना डेमोनेटाइजेशन और कोविड-19 लॉकडाउन से की। "जब आप लोगों को अचानक अपनी जिंदगी के आधार को बदलने को कहते हैं, तो यह एक आर्थिक और सामाजिक आपदा हो जाती है," उन्होंने कहा। उनका संदेश साफ था — इस तरह के अनियोजित, अत्यधिक त्वरित अभियान लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।

महादेवपुरा का रहस्य: एक नाम का दावा, एक आरोप का दायरा

यह सब एक विशेष घटना के बाद तेज हुआ — बैंगलोर के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में लाखों नामों का अवैध जोड़ा जाना। नवंबर 2025 में, कांग्रेस कर्मचारी विनोदा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उनका दावा है कि एक ऐसा नेक्सस था — अधिकारियों, एक राजनीतिक दल और निजी व्यक्तियों के बीच — जिसने फर्जी मतदाताओं को जोड़ा।

इसके जवाब में, अरविंद लिम्बावल्ली, बीजेपी के इस क्षेत्र के लंबे समय के विधायक, ने कहा कि यह सब माइग्रेंट आबादी के कारण है। "2008 में 2.75 लाख वोटर थे, अब 6.80 लाख हैं। यह वृद्धि अवैध नहीं, जनसांख्यिकी है," उन्होंने कहा। लेकिन विनोदा का जवाब है: "अगर यह वृद्धि है, तो फिर नाम जोड़ने के लिए कोई वैध प्रमाण क्यों नहीं?"

कांग्रेस का आंतरिक उथल-पुथल: बिहार में सात नेताओं का निलंबन

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इसी बीच, कांग्रेस के अंदर भी तूफान चल रहा है। 24 नवंबर, 2025 को, बिहार प्रांतीय कांग्रेस समिति (BPCC) ने सात नेताओं को छह साल के लिए प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। कारण? "विपक्षी गतिविधियां" और "अनुशासन का उल्लंघन" — जो बिहार विधानसभा चुनाव के बाद आया।

BPCC अध्यक्ष राजेश राम ने सभी जिला समितियों को निर्देश दिया कि वे बूथ-स्तरीय वोटिंग, कैंपेन रणनीति और गठबंधन विफलताओं का विश्लेषण करें। लेकिन विद्रोही नेता कह रहे हैं: "यह सिर्फ बलि का बकरा बनाने का तरीका है। राहुल और खरगे की गलतियां छिपाने के लिए।"

राहुल के विरुद्ध नया हमला: न्यायाधीश की शपथ के बिना अनुपस्थिति

24 नवंबर को, शेहजाद पूनावाला, बीजेपी के स्पीकर, ने राहुल को राष्ट्रपति भवन में न्यायाधीश सूर्य कांत की शपथ समारोह में अनुपस्थिति के लिए टारगेट किया। "क्या राहुल बाबा जंगल सफारी पर गए हैं, या विदेश घूमने?" उन्होंने ट्वीट किया। इसके जवाब में, 272 नामी नागरिकों ने राहुल को एक खुला पत्र भेजा — चुनावी निष्पक्षता के लिए एक आह्वान। लेकिन इसके बारे में जानकारी अभी अस्पष्ट है।

एक अलग घटना — हुबली में एक कॉन्वेंट स्कूल में RSS के संबंधित लोगों का घुसपैठ — जिसकी चर्चा 24 सितंबर, 2025 को एक ब्लॉग पर हुई, उसे भी इस तर्क के साथ जोड़ दिया गया। लेकिन इसका कोई सीधा संबंध नहीं है।

क्या अगला कदम?

क्या अगला कदम?

अब चुनाव आयोग चुप है। कोई आधिकारिक बयान नहीं। कोई जांच का ऐलान नहीं। लेकिन लोग अब जाग रहे हैं। एक बूथ अधिकारी की मौत एक आंकड़ा नहीं, एक इंसान की मौत है। और जब लोग अपने नाम के लिए लड़ने के बजाय बैठ जाएं, तो लोकतंत्र भी बैठ जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

SIR क्या है और यह क्यों विवादित है?

SIR यानी विशेष तीव्र समीक्षा, चुनाव आयोग द्वारा जारी एक अभियान है जिसका उद्देश्य 22 साल पुरानी मतदाता सूचियों को नवीनीकृत करना है। इसमें बूथ स्तरीय अधिकारी घर-घर जाकर डेटा एकत्र करते हैं। विवाद इसलिए है कि इसे डिजिटल सिस्टम के बजाय कागजी तरीके से किया जा रहा है, जिससे BLOs को अत्यधिक दबाव में लाया गया है, और इसके नतीजे में 16 की मौत हो गई।

राहुल गांधी के आरोपों का क्या सच्चाई है?

राहुल गांधी का आरोप है कि SIR का वास्तविक उद्देश्य वास्तविक मतदाताओं को थका कर उन्हें वोटिंग से दूर रखना है, ताकि फर्जी नाम जोड़े जा सकें। उनके आरोपों का समर्थन महादेवपुरा में लाखों अवैध नामों के जोड़े जाने के आंकड़ों और BLOs की मौतों से होता है। हालांकि, बीजेपी इसे राजनीतिक आरोप बताती है।

BLOs की मौतों की जांच हुई है?

अभी तक कोई आधिकारिक जांच नहीं हुई है। चुनाव आयोग ने इन मौतों को "संयोग" बताया है, लेकिन डॉक्टरों और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इनमें शारीरिक और मानसिक थकान का स्पष्ट संबंध है। एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य अध्ययन के अनुसार, बूथ अधिकारियों में अत्यधिक कार्य दबाव के कारण हृदय रोग का खतरा 3.2 गुना बढ़ जाता है।

क्या डिजिटल वोटर लिस्ट संभव है?

हां, और यह तकनीकी रूप से पहले से ही संभव है। भारत ने आधार और डिजिटल आयुष्मान भारत जैसे प्रणालियों के साथ दिखाया है कि विशाल डेटाबेस को सुरक्षित और विश्वसनीय बनाया जा सकता है। अगर यह आयुष्मान भारत के लिए संभव है, तो फिर वोटर लिस्ट के लिए क्यों नहीं? सवाल यह है कि क्या इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति है।

कांग्रेस के भीतर अंतर्विरोध क्यों बढ़ रहे हैं?

बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस की हार ने नेतृत्व की जिम्मेदारी को सवाल में डाल दिया। जब राहुल और खरगे बाहर चुनावी आरोप लगाते हैं, तो नीचे के नेता अपने अधिकारों के लिए जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं। यह एक विस्थापन रणनीति है — जिसमें निचले स्तर के नेता बलि के बकरे बन रहे हैं, जबकि ऊपरी नेतृत्व बच रहा है।

इस विवाद का भविष्य क्या होगा?

अगर चुनाव आयोग ने अभी तक कोई जांच नहीं की, तो यह विवाद अगले चुनावों तक बना रहेगा। संभावित रूप से, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट या एक निर्वाचन अधिकार आंदोलन लेगा। लोग अब चुनाव के बारे में विश्वास खो रहे हैं — और जब विश्वास खत्म होता है, तो लोकतंत्र भी खत्म हो जाता है।

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