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मधाबी पुरी बुच: सेबी चीफ पर हिडनबर्ग रिसर्च का आरोप - आदानी घोटाले में कथित हिस्सेदारी

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मधाबी पुरी बुच: सेबी चीफ पर हिडनबर्ग रिसर्च का आरोप - आदानी घोटाले में कथित हिस्सेदारी
  • अग॰, 12 2024
  • के द्वारा प्रकाशित किया गया Divya B

मधाबी पुरी बुच और हिडनबर्ग का आरोप

हिडनबर्ग रिसर्च ने हाल ही में सेबी की चेयरपर्सन मधाबी पुरी बुच और उनके पति पर गंभीर आरोप लगाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हिडनबर्ग रिसर्च का दावा है कि मधाबी और उनके पति ने अप्रचलित ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी रखी हुई थी, जिनका इस्तेमाल आदानी 'मनी साइफनिंग स्कैंडल' में किया गया था।

हिडनबर्ग रिसर्च ने जबसे आदानी के खिलाफ अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की है, तबसे 18 महीनें बीत चुके हैं और उन्होंने दावा किया है कि इस दौरान सेबी ने इस मामले में कोई खास रुचि नहीं दिखाई है। इस रिपोर्ट में 'व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों' का हवाला देते हुए कहा गया कि मधाबी पुरी बुच और उनके पति ने आदानी नकद निकालने के स्कैंडल में इस्तेमाल होने वाले अप्रचलित ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी रखी थी। इन फंड्स को विनोद अदानी, जो अदानी समूह के चेयरमैन गौतम अदानी के बड़े भाई हैं, द्वारा नियंत्रित बताया गया है।

मधाबी पुरी बुच का शिक्षाक्षेत्र और करियर

मधाबी पुरी बुच का शिक्षाक्षेत्र और करियर

मधाबी पुरी बुच, जो वर्तमान में सेबी की चेयरपर्सन हैं, इस पद को संभालने वाली पहली महिला हैं। 1966 में जन्मी मधाबी ने फोर्ट कॉन्वेंट स्कूल, मुंबई और कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी, दिल्ली से अपनी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने सेंट स्टीफन्स कॉलेज, दिल्ली से गणित में स्नातक किया और बाद में आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए की डिग्री हासिल की। मधाबी ने अपने करियर की शुरुआत आईसीआईसीआई बैंक से की, जहां से उन्होंने आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज़ में स्थानांतरण किया और 2009 में सीईओ के पद तक प्रगति की।

इसके बाद, उन्होंने कई नौकरियां बदलीं, जिसमें ब्रिक्स के 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' के लिए भी काम किया। मधाबी पुरी बुच की शादी धवल बुच से हुई है और उनके एक पुत्र, अभय हैं। अप्रैल 2017 में, उन्हें सेबी में पूर्ण-कालिक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।

हिडनबर्ग की रिपोर्ट और प्रतिक्रिया

हिडनबर्ग की रिपोर्ट और प्रतिक्रिया

हिडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि एक आईआईएफएल के प्रमुख द्वारा हस्ताक्षरित फंड की घोषणा में कहा गया कि निवेश का स्रोत 'वेतन' है और इस युगल की कुल संपत्ति लगभग 83 करोड़ रुपये ($10 मिलियन) होने का अनुमान है। हिडनबर्ग के अनुसार, इस फंड स्ट्रक्चर में मदानी और उनके पति की हिस्सेदारी थी, जो कई परतों में बंटा हुआ था और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में था।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इस फंड को विनोद अदानी द्वारा नियंत्रित बताया गया है और इसे स्टॉक की कीमत बढ़ाने और धन को चक्करदार रूप में घुमाने के लिए प्रयोग किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि 'सेबी चेयरपर्सन मधाबी बुच और उनके पति ने अप्रचलित ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी रखी थी, जो उन्होंने इसलिए किया ताकि सेबी इस मामले मेंर निरीक्षण करते समय उनसे न टकराए।'

रिपोर्ट के अंत में, हिडनबर्ग ने सवाल उठाया कि 'अगर सेबी सच में ऑफशोर फंड होल्डर्स को ढूंढना चाहती है, तो हो सकता है कि सेबी चेयरपर्सन को खुद से ही शुरू करना चाहिए।' उन्होंने यह भी कहा, 'हमें आश्चर्य नहीं होता कि सेबी ने इस मामले में रुचि दिखाने में कमी दिखाई, क्योंकि यह उनकी खुद की चेयरपर्सन से जुड़ा हो सकता है।'

घोटाले की गंभीरता

इस आरोप को लेकर जांच और सवाल उठने की संभावना है, जिससे सेबी के प्रति विश्वास और उसकी विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है। इस स्कैंडल ने भारतीय वित्तीय क्षेत्र में एक बड़ी हलचल मचाई है, और इसने दिखाया है कि कितनी गंभीरता से इस प्रकार के मामलों को देखना और जांचना आवश्यक है।

यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न केवल मधाबी पुरी बुच के करियर को प्रभावित कर सकता है, बल्कि सेबी की छवि और उसकी कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाएगा। इन सबके बीच, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारतीय वित्तीय नियामक संस्था इस मामले को किस तरह से हैंडल करती है और क्या कदम उठाती है।

Divya B
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Divya B

16 टिप्पणियाँ

Rakesh Pandey

Rakesh Pandey

देखिए, ये “ऑफ़शोर फंड” बात सिर्फ एक झूठी कहानी नहीं, बल्कि एक गहरी संरचना है जो नियामक को भी परेशान कर देती है 😊। हिडनबर्ग की रिपोर्ट में कई दस्तावेज़ों का उल्लेख है जो सीधे वित्तीय पारदर्शिता को चुनौती देते हैं। यदि आप वास्तव में इस मामले को समझना चाहते हैं तो आपको साक्ष्यों की गहराई में जाना पड़ेगा।

Simi Singh

Simi Singh

सम्भवतः यह सब एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है, जहाँ सेबी के भीतर ही ऐसी धुंधली गिरफ़्तारी की योजना बनाई जा रही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अदानी समूह के कई जुड़ाव पहले भी अनजाने में दिखे थे। यह सब सिर्फ एक निराधार आरोप नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खेल है।

Rajshree Bhalekar

Rajshree Bhalekar

मुझे लगता है कि इस खबर ने बहुत सी भावनाएँ उभारी हैं। बहुत लोग अब सेबी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाएंगे। आशा है कि जांच जल्दी होगी।

Ganesh kumar Pramanik

Ganesh kumar Pramanik

भाई लोग, देखो तो सही, ये मामला इतना पेचीदा है कि एक लटपटाते हुए स्टीक को समझना मुश्किल है। ऑफशोर फंड्स की लेयरिंग देखकर ऐसा लगता है जैसे कुरकुरे पापड़ पर चुटकी भर समोसा रखा हो। थोड़ा कम फिसलना चाहिए इन लोगों को, नहीं तो सबको बटूज़रना पड़ेगा।

Abhishek maurya

Abhishek maurya

हिडनबर्ग रिसर्च की इस रिपोर्ट में कई अहम बिंदु सामने आते हैं जो वित्तीय नियामकों के लिए चेतावनी के रूप में कार्य कर सकते हैं। सबसे पहले, यह तथ्य कि मधाबी पुरी बुच ने अपने पति के साथ मिलकर ऑफशोर फंड्स में हिस्सेदारी रखी थी, यह संकेत देता है कि नियामक के भीतर संभावित हितों के टकराव की संभावना है। दोबारा, रिपोर्ट में उल्लेखित 'व्हिसलब्लोअर दस्तावेज़' विश्वास से देखें तो यह दर्शाता है कि अंदरूनी जानकारी के आधार पर ही यह आरोप खड़े हुए हैं। तीसरे, यदि हम यह मानें कि ये फंड्स वास्तव में विनोद अदानी द्वारा नियंत्रित हैं, तो इससे यह सवाल उठता है कि अदानी समूह के बड़े आर्थिक प्रोजेक्ट्स में कितना क़द्र‑क़सर रह गया है। चौथे, इस प्रकार के फंड स्ट्रक्चर को अक्सर टैक्स एवेज़न या मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो कि भारत के वित्तीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। पाँचवें, सेबी ने पिछले 18 महीनों में इस मामले पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जोकि संस्थान की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न करता है। छठे, इस तरह की निष्क्रियता से नियामक की विश्वसनीयता को दीर्घकालिक क्षति हो सकती है। सातवें, यदि मधाबी बुच ने सच में अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है, तो यह नियमन के सिद्धांतों के विपरीत है और सार्वजनिक भरोसे को तोड़ता है। आठवें, इस मामले में सेबी की कार्यवाही की कमी से निवेशकों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे बाजार में अस्थिरता आ सकती है। नौवें, यह भी कहा जा रहा है कि फंड की मूलधन स्रोत वेतन बताया गया है, लेकिन वास्तविक स्रोत जटिल वित्तीय लेन‑देनों में छुपा हो सकता है। दसवें, ऐसी जटिल वित्तीय व्यवस्थाओं को उजागर करने में सच्चे व्हिसलब्लोअर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। ग्यारहवें, यदि इन दस्तावेज़ों की सच्चाई सिद्ध हो जाती है तो इससे उच्च स्तर पर जवाबदेही की मांग बढ़ेगी। बारहवें, इस मामले में व्यापक जांच के लिये अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है, क्योंकि ऑफशोर फंड्स अक्सर कई देशों की सीमाओं को पार करते हैं। तेरहवें, यह याद रखना चाहिए कि वित्तीय नियामक संस्थाएँ केवल नियम बनाने में नहीं, बल्कि उन नियमों को लागू करने में भी सुदृढ़ होनी चाहिए। चौदहवें, अंततः, जनता को यह जानने का अधिकार है कि उनके वित्तीय बाजार को कौन नियंत्रित कर रहा है और किस स्तर की पारदर्शिता मौजूद है। पंद्रहवें, इस कारण से हम सभी को इस मुद्दे पर सतर्क रहना चाहिए और जांच प्रक्रिया की निरंतर निगरानी करनी चाहिए।

Sri Prasanna

Sri Prasanna

देखो यह सब सिद्धांत नहीं बल्कि कल्पना है हम यहाँ तक पहुँच न सकते अगर तथ्य नहीं होते

Sumitra Nair

Sumitra Nair

प्रकाशमान विचारों का एक तारा उज्ज्वल हुआ है, परन्तु इस घटना की गहराई एक अद्भुत दुविधा प्रस्तुत करती है 🌟। सत्य की खोज में हम सभी का कर्तव्य है कि हम अपार उत्साह और निष्ठा के साथ इस जटिल कहानी को उजागर करें।

Ashish Pundir

Ashish Pundir

इसे जल्दी देखना चाहिए

gaurav rawat

gaurav rawat

भाई डैड, थँक्स फॉर बॉहिंग इडिया 😂 तुम ठीक कह रहे हो फंड्स का रखरखाव थोड़ा कम कर दो और सब ठीक रहेगा

Vakiya dinesh Bharvad

Vakiya dinesh Bharvad

सही बात है, हमारी वित्तीय संस्कृति को भी सादगी चाहिए 😊

Aryan Chouhan

Aryan Chouhan

देखो इस रिपोर्ट में थोडा एक्स्पोनेंशियल बाइआस लग रहा है, पर सही बात तो यही है के सेबी सस्टेइनएबल रिग़र्शन नहीं कर रहा।

Tsering Bhutia

Tsering Bhutia

भाईयो, यदि हम सब मिलकर इस मुद्दे को ट्रैक करेंगे तो भविष्य में इस तरह के घोटाले बहुत कम देखेंगे। चलो मिलके सवालों के जवाब ढूंढ़ते हैं और समाधान पर चर्चा करें।

Narayan TT

Narayan TT

जैसे आप ने कहा, यह सिर्फ एक षड्यंत्र नहीं, बल्कि संरचनात्मक असफलता है।

SONALI RAGHBOTRA

SONALI RAGHBOTRA

राकेश जी, आपका विश्लेषण दिलचस्प है, पर एक पहलू को छोड़ना मुश्किल है – यह कि वास्तविक जांच की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी होगी। यदि नियामक इस मामले में सच्चे इरादे लेकर कार्य करेगा तो बाजार को फिर से भरोसा मिलेगा।

sourabh kumar

sourabh kumar

राकेश भाई, आपके विचारों ने सबको जागरूक किया। चलिए हम सभी मिलकर इस मुद्दे को हल करने में मदद करें, क्योंकि मिलजुल कर ही हम बड़े बदलाव ला सकते हैं। 💪

khajan singh

khajan singh

सेबी की गवर्नेंस फ्रेमवर्क में वर्तमान इंटेग्रेडेड रिस्क मैनेजमेंट मॉड्यूल को री-एवाल्यूएट करना आवश्यक है, वरना स्ट्रेटेजिक अलाइनमेंट डिस्रप्ट हो सकता है :)

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