बाजार की वर्तमान स्थिति
भारतीय शेयर बाजार ने 25 सितंबर को एक गंभीर झटका खाया। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का सेंसैक्स 555.95 अंक यानी 0.68% गिरकर 81,159.68 पर समाप्त हुआ, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी 166.05 अंक (0.66%) घटकर 24,890.85 पर बंद हुआ। यह गिरावट लगातार पाँच ट्रेडिंग सत्रों की सीरीज़ का हिस्सा है, जो पिछले छह महीनों में देखी गई सबसे लंबी गिरावट है।
पिछले चार सत्रों के साथ मिलाकर सेंसैक्स ने कुल 1,854 अंक गिराया, जबकि निफ्टी ने लगभग 2% का औसत नुकसान झेला। बिडी के मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स भी लगभग 0.7% नीचे पड़े, जिससे स्पष्ट हो रहा है कि नुकसान केवल दो बड़े बेंचमार्क तक सीमित नहीं रहा।
इन आँकड़ों को देखते हुए निवेशकों का मन बहुत चिढ़ा हुआ है। कई रिटेल ट्रेडर अपने पोर्टफोलियो में भारी कटौती कर चुके हैं, और बड़े संस्थागत निवेशकों ने भी अपने पोजिशन को घटाया।
कारण और संभावित प्रभाव
इस तेज़ गिरावट के कई कारण सामने आए हैं। सबसे बड़ा कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का बड़े पैमाने पर निकास है। इस साल अब तक FPIs ने लगभग 13‑15 बिलियन डॉलर (लगभग 1.1‑1.2 लाख करोड़ रुपये) की पूँजी बाहर ले ली है। 23 सितंबर को ही उन्होंने 3,551.19 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिससे केवल सितंबर महीने में कुल आउटफ़्लो $1.32 बिलियन तक पहुँच गया।
रुपये की गिरावट भी मददगार नहीं रही। डॉलर के मुकाबले रुपया 88 के स्तर को पार कर चुका है, जिससे विदेशी निवेशकों की भारतीय इक्विटी में रुचि कम हो गई। साथ ही, यूएस में बढ़ती टैरिफ चिंताएँ और कम महंगाई के कारण मौद्रिक नीति में तेज़ी से बदलाव की उम्मीद नहीं की जा रही, जिससे बाजार में उथल‑पुथल बनी हुई है।
तकनीकी तौर पर निफ्टी ने 24,700‑25,100 के समर्थन स्तर को भी खो दिया है, जिससे आगे और गिरावट की संभावना खुली हुई है। वित्तीय सेवाएँ और आईटी सेक्टर इस गिरावट में सबसे अधिक दबाव में रहे हैं; दोनों सेक्टरों के बड़े ब्लू‑चिप शेयरों में तेज़ बिक्री देखी गई।
बाजार के इस मंदी के असर व्यापक हैं:
- बैंकिंग सिस्टम की स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं, क्यूंकि 금융기관ों के स्टॉक भी नीचे गिर रहे हैं।
- रिटेल निवेशकों ने बड़े नुकसान झेले हैं, जिससे उपभोक्ता विश्वास पर चोट लगी है।
- कॉर्पोरेट कमाई पर दबाव बढ़ा है, कई कंपनियों को अब अपने प्रोजेक्ट्स को पुन: समीक्षा करना पड़ रहा है।
- सरकार और नियामक संस्थाओं को बाजार को स्थिर करने के लिए जल्द ही अतिरिक्त उपाय करने पड़ेंगे।
वर्तमान में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने रुपये को स्थिर करने के लिए इंटरवेंशन किया है, जबकि सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (SEBI) ने अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए ट्रेडिंग पर प्रतिबंध लगाए हैं। सरकार भी आर्थिक प्रोत्साहन के पैकेज की तैयारियों में लगी हुई है, ताकि निवेशकों का भरोसा फिर से बहाल हो सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की गिरावट कई कारकों के संयोजन से आती है—वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, घरेलू नीतियों में असंगति, और विदेशी निवेशकों का विश्वास घटना। उन्होंने कहा कि यदि बाजार को फिर से गति देना है, तो न सिर्फ मौद्रिक नीति में लचीलापन चाहिए, बल्कि राजनैतिक स्थिरता और स्पष्ट आर्थिक दिशा भी आवश्यक है।
7 टिप्पणियाँ
Vidyut Bhasin
क्या बात है, हर दिन नयी गिरावट और हम सब ऊँचे‑नीचे देख‑ते‑ही रहते हैं? जैसे बाजार ने कहा, “आज मैं थोड़ा हटा दूँगा।”
nihal bagwan
विदेशी पूँजी के बहिर्गमन को हम राष्ट्रीय बंधुता की पराकाष्ठा मानते हैं; हमारे स्वदेशी उद्योग ही भारत की असली रीढ़ हैं। जब तक हम अपने उद्योगों को सशक्त नहीं करेंगे, तब तक यह गिरावट जारी रहेगी।
Arjun Sharma
भाई, इस फिकर को थोड़ा कम करो, अभी भी बहुत सारे ‘क्लोज़‑ट्रेंड’ सेक्टर हैं जो रिवाइंड कर रहे हैं। जैसे कि SME‑फंडिंग में अभी भी ‘लीड‑इंटरेस्ट’ हाई है, तो थोड़ा धीरज रखो, मार्केट फिर से बाउंस करेगा।
Sanjit Mondal
नमस्ते सभी निवेशकों, वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करने के लिए कुछ बिंदु प्रस्तुत कर रहा हूँ।
पहला, निरंतर पाँच दिन की गिरावट न केवल भावनात्मक तनाव पैदा करती है, बल्कि तकनीकी चार्ट पर भी निकास संकेत देती है।
दूसरा, विदेशी पोर्टफ़ोलियो निवेशकों (FPI) का निकास वास्तव में मौद्रिक बाजार में अस्थिरता का मुख्य कारण है, जिसे हम विदेशी पूँजी प्रवाह का ‘नेट आउटफ़्लो’ कहते हैं।
तीसरा, रुपये का 88.0 के स्तर को पार करना जोखिम प्रीमियम को बढ़ाता है, जिससे घरेलू निवेशकों का भरोसा कम हो जाता है।
चौथा, निफ्टी के समर्थन स्तर 24,700‑25,100 के टूटने से संभावित समर्थन बिंदु 24,400 के आसपास देखना चाहिए।
पाँचवा, वित्तीय सेवाएँ और आईटी सेक्टर का दबाव मुख्यतः उच्च मूल्यांकन और वैश्विक जोखिमों से उत्पन्न हुआ है।
छठा, बँकिंग सिस्टम में अस्थिरता को देखते हुए, स्टॉक्स में ‘डेट‑टू‑इक्विटी’ रेशियो की समीक्षा आवश्यक है।
सातवाँ, रिटेल निवेशकों के लिए विविधीकरण रणनीति अपनाना तुरंत लाभदायक हो सकता है; विभिन्न सेक्टरों में छोटे‑बड़े स्टॉक्स को मिलाकर पोर्टफ़ोलियो तैयार करें।
आठवाँ, यदि आप लिवरेज्ड फ़्यूचर्स में हैं, तो मार्जिन कॉल से बचने के लिए मौजूदा पोजिशन को कम करने पर विचार करें।
नवाँ, RBI की मुद्रा नीति में संभावित ढील के संकेत आने पर इंडेक्स में पुनः रुचि बढ़ सकती है, इसलिए नीतियों के अपडेट पर नज़र रखें।
दसवा, SEBI के ट्रेडिंग प्रतिबंधों को अस्थायी मानें और एंट्री‑टायमिंग को पुनः तय करें।
ग्यारहवाँ, सरकारी प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा के बाद, डिफेंस और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में अल्पकालिक उछाल की संभावना बनती है।
बारहवाँ, निवेशकों को अल्पकालिक उछाल के पीछे ‘हाई‑वॉल्यूम’ ट्रेडिंग पर ध्यान देना चाहिए, ताकि ट्रेंड बदलने की सटीक पहचान हो सके।
तेरहवाँ, कुल मिलाकर, धैर्य और अनुशासन ही इस बाजार में सर्वश्रेष्ठ मित्र हैं 😊।
चौदहवाँ, दीर्घकालिक निवेशक बोनस‑डिविडेंड और रिटर्न‑ऑन‑इक्विटी को प्राथमिकता दें, जिससे पोर्टफ़ोलियो स्थिर रहे।
पंद्रहवाँ, अंत में, याद रखें कि बाजार का चक्र हमेशा चलता रहता है; गिरावट के बाद पुनः उछाल अवश्य आता है।
षोलहवाँ, आशा है ये बिंदु आपके निवेश निर्णय में मदद करेंगे; शुभकामनाएँ।
Ajit Navraj Hans
मैं कहूँगा कि राजनैतिक निर्णय ही असली कारण है
arjun jowo
सबको सलाह है कि इस मंदी में भी थोड़ी बचत रखें और धीरज बनाए रखें।
Rajan Jayswal
बाजार का झटका बहुत घायल कर रहा है।