ओमान में फिर आमने-सामने होंगे ईरान-अमेरिका
ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु वार्ता का तीसरा अहम दौर इसी सप्ताह ओमान में होने जा रहा है। इससे पहले दोनों देश रोम और ओमान में बातचीत के दो राउंड कर चुके हैं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम और उसके यूरेनियम संवर्धन को लेकर दुनिया भर में आशंका बनी हुई है कि कहीं इसका इस्तेमाल हथियार बनाने में न होने लगे। अब दोनों देश इसे लेकर सीधी बातचीत का रास्ता खोज रहे हैं।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बाकाई ने खुलासा किया कि वार्ता में बार-बार खलल डालने की कोशिशें हो रही हैं और इसका जिम्मेदार उन्होंने इजरायल और अमेरिकी 'युद्ध समर्थक धड़ों' को ठहराया। बाकाई का कहना है कि इजरायल कुछ अमेरिकी नेताओं के साथ मिलकर बातचीत को पटरी से उतारने की कोशिश कर रहा है। बाकाई ने ये भी कहा कि अमेरिकी नेतृत्व को अपने भीतर एकजुटता दिखानी पड़ेगी, नहीं तो तमाम कूटनीतिक प्रयास बेकार हो जाएंगे।

इजरायल का रवैया और अमेरिका का लक्ष्य
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू खुले तौर पर किसी भी ऐसे समझौते के खिलाफ हैं जिसमें ईरान का पूरा परमाणु तंत्र समाप्त न हो। उनकी मांग है कि जिस तरह लीबिया के साथ किया गया था, उसी तरह ईरान का न केवल सैनिक बल्कि नागरिक परमाणु ढांचा भी पूरी तरह खत्म किया जाए। नेतन्याहू का मानना है कि आधा-अधूरा समझौता ईरान को आगे बढ़ने का मौका देगा। इधर, अमेरिका की रणनीति इससे काफी अलग है। अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के मुताबिक, अमेरिका का फोकस इस बात पर है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम का इस्तेमाल हथियार बनाने में न हो। वे कहते हैं, "हमारी सबसे सख्त शर्त है कि ईरान किसी भी हाल में अपने परमाणु कार्यक्रम से हथियार न बना सके।"
मुश्किल यह है कि दोनों देशों के विरोधाभासी रुख के बीच वार्ता आगे बढ़ रही है। ओमान में इस सप्ताह होने वाला तीसरा राउंड विवाद के तमाम पेचों को सुलझाने की एक और कोशिश होगा। यही वजह है कि दुनिया की नजरें इस बैठक पर टिक गई हैं। अगर इस बार भी बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती, तो ईरान के सैन्य इरादों को लेकर संदेह और गहरे हो सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल को साफ तौर पर सैन्य कार्रवाई से बचने की सलाह दी थी। ट्रंप ने कहा था कि फिलहाल कूटनीति से समाधान खोजना बेहतर है। इससे साफ दिखता है कि इस पूरे मामले में एक ओर सैन्य दबाव की रणनीति है तो दूसरी ओर बातचीत और समझौते की कोशिशें जारी हैं।
वार्ता के परिणाम चाहे कुछ भी हों, यह दौर इतना तय कर देगा कि ईरान-अमेरिका संबंधों में अगला अध्याय किस दिशा में जाएगा। ओमान की धरती पर दोनों देशों के अधिकारी परमाणु कार्यक्रम को लेकर अब तक सबसे सीधा, खुला और संभावनाओं से भरा संवाद करने जा रहे हैं।
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