जब बात आती है पर्दानशीन महिलाएँ, वे महिलाएँ जिन्हें सामाजिक, सांस्कृतिक या पारिवारिक दबाव के कारण घर से बाहर निकलने, सार्वजनिक जीवन में भाग लेने या शिक्षा पाने से रोका जाता है. यह एक ऐसी स्थिति है जो भारत के कई हिस्सों में अभी भी जीवित है, खासकर ग्रामीण और गहरे पारिवारिक ढांचों में। ये महिलाएँ केवल घर की दीवारों के बीच नहीं रहतीं—वे अपने परिवार का समर्थन करती हैं, घर का खर्च बचाती हैं, और कई बार अपने बच्चों की पढ़ाई का ध्यान रखती हैं, बिना खुद की आवाज़ उठाए।
ये महिलाएँ शिक्षा, जिससे उनकी सोच बदलती है और उनके लिए नए रास्ते खुलते हैं की ओर धीरे-धीरे बढ़ रही हैं। कई गाँवों में अब लड़कियों को स्कूल भेजना सामान्य हो गया है। आर्थिक स्वावलंबन, जैसे महिला स्वयं सहायता समूह, बेसिक बिजनेस या ऑनलाइन बिक्री के जरिए, वे अपने घर में फैसले लेने की क्षमता पा रही हैं। यह सिर्फ एक बदलाव नहीं, बल्कि एक छोटी-छोटी क्रांति है।
पर्दानशीन महिलाएँ कभी अपने आप को बलिदान करने वाली नहीं, बल्कि अपने आप को बचाने वाली बन रही हैं। कुछ ने घर से बाहर निकलकर बेचने का काम शुरू किया, कुछ ने अपने बेटों को पढ़ाया, ताकि वे उनके लिए आवाज़ बन सकें। यह बदलाव जबरदस्ती नहीं, बल्कि एक धीमी, लेकिन अडिग लड़ाई से आया है।
इस संग्रह में आपको ऐसी ही कहानियाँ मिलेंगी—जहाँ महिलाएँ ने अपनी सीमाओं को तोड़ा, अपने घर में अपनी जगह बनाई, और बिना बड़े नारे लगाए, बस अपने काम से साबित किया कि वे भी बदलाव का हिस्सा हैं। ये कहानियाँ किसी की गलती नहीं, बल्कि एक नए इरादे की शुरुआत हैं।
निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 12 वैकल्पिक फोटो आईडी जारी कीं, जिससे पर्दानशीन महिलाओं को मतदान में आसानी होगी। एंगनवाड़ी कार्यकर्ता पहचान जांचेंगे, बिना चेहरा उजागर किए।
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