पुरी में धूमधाम से मना रथयात्रा का पर्व
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा का 'पहंडी' अनुष्ठान रविवार, 7 जुलाई, 2024 को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में बड़े हर्षोल्लास के साथ शुरू हुआ। इस धार्मिक अनुष्ठान के दौरान, भगवान सुदर्शन को सबसे पहले दरपदलान रथ पर ले जाया गया, उसके बाद भगवान बलभद्र को तलध्वज रथ पर और देवी सुभद्रा को दरपदलान रथ पर स्थापित किया गया। अंत में भगवान जगन्नाथ को नंदीघोष रथ पर बिठाया गया। यह अनुष्ठान सुबह 11 बजे शुरू हुआ, जब भगवान तेजी से मंदिर के अंदर से निकाले गए।
पहंडी अनुष्ठान की परंपरा
पहंडी अनुष्ठान का आयोजन 'बैसी पहाचा', जो मंदिर की 22 सीढ़ियाँ हैं, के माध्यम से किया गया। यह एक विशेष और आकर्षक प्रदर्शन है जिसका आनंद लेने के लिए बड़े पैमाने पर श्रद्धालुगण पुरी में जमा होते हैं। इस साल यह प्रक्रिया और भी विशेष रही क्योंकि ऐसा आयोजन 53 वर्षों बाद हुआ है। 'मंगला आरती' और 'मैलम' जैसे अनुष्ठान देवताओं के मंदिर से बाहर निकलने से पहले किए गए।
रथयात्रा में लाखों श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब
इस आयोजन में लाखों की संख्या में भक्त पहुँच चुके हैं। पुरी का वातावरण धर्ममय हो गया है। तीन रथ मंदिर के सिंह द्वार के सामने खड़े हैं जो पूर्व की दिशा में गुंडीचा मंदिर की ओर मुख किए हुए हैं। जैसे ही रथयात्रा शुरू होती है, भगवान बलभद्र का रथ तलध्वज सबसे पहले नेतृत्व करता है, उसके बाद देवी सुभद्रा का दरपदलान रथ और फिर भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ आता है। यह पूरी यात्रा दो दिनों तक चलती है और मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक जाती है।
रथयात्रा की सुरक्षा और संगठन
लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए, सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। विशेष पुलिस बल तैनात किए गए हैं, और यातायात को सुगम बनाने के लिए मार्गों को व्यवस्थित किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी इस भव्य आयोजन के लिए बधाई संदेश भेजे और जनमानस को शुभकामनाएं दीं।
रथयात्रा का यह भव्य आयोजन न केवल धार्मिक अपितु सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रकार के आयोजनों से भारतीय संस्कृति और परंपरा की झलक प्रदर्शित होती है और आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से अवगत कराया जाता है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति की धरोहर है और पुरी में हर साल लाखों श्रद्धालुओं के समागम का कारण बनता है। इस साल के आयोजन की विशेषता यह है कि ऐसा दो दिनों का आयोजन 53 साल बाद हो रहा है और एक बार फिर इस अद्भुत दृश्य का साक्षी बनने के लिए लोगों का जमावड़ा दिखा।
पुरी की यह यात्रा सभी के लिए एक यादगार अनुभव बन जाती है और यही कारण है कि दुनियाभर के लोग इस धार्मिक मेले में भाग लेने आते हैं। भक्तों की आस्था और श्रद्धा इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बना देती है, और इस प्रकार के अनुष्ठान भारतीय संस्कृति को अपनी भव्यता के साथ जीवित रखते हैं।
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