ट्रम्प की टैरिफ घोषणा ने फार्मा शेयरों को झटका दिया
संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति ने अपने Truth Social प्लेटफ़ॉर्म पर घोषणा की कि 1 अक्टूबर, 2025 से सभी आयातित ब्रांडेड व पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ लगेगा। इस कदम को उन्होंने "America First" व्यापार नीति के हिस्से के रूप में पेश किया और उन कंपनियों को छूट दी जो यूएस में निर्माण प्लांट बना रही हों या निर्माणाधीन हों।
इस खबर के तुरंत बाद भारत की स्टॉक मार्केट, खासकर डैलाल स्ट्रीट में, फार्मा शेयर बड़े पैमाने पर गिरते दिखे। निफ़्टी फार्मा सूचकांक खुलते‑ही 2.5% से अधिक नीचे गिरा, और सभी 20 घटक शेयर लाल रंग में बंद हुए।
- सन फार्मा: 3% से अधिक गिरावट, क़्लोज़िंग ₹1,586.55, दैनिक गिरावट 2.55%।
- डॉ. रेड्डीज़ लैबोरेटरीज: यूएस में ब्रांडेड और स्पेशल्टी ड्रग्स की बड़ी हिस्सेदारी के कारण सबसे अधिक जोखिम वाला।
- सिप्ला: जेनरिक ड्रग्स पर अधिक फोकस होने से तुलनात्मक रूप से सुरक्षित माना गया।
- बायोकॉन: बायोसिमिलर्स पर केंद्रित, लेकिन नई टैरिफ के तहत वर्गीकरण अस्पष्ट होने से उलझन में।
- लुपिन, ऑरोबिंदो फार्मा, टॉरेंट फार्मा, ग्लैंड फार्मा: सभी ने उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की।
कंपनियों की यूएस राजस्व पर निर्भरता 30-50% के बीच है, जबकि FY 2025 में भारतीय फार्मा निर्यात USD 30 बिलियन तक पहुंच गया। इस कारण टैरिफ का असर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

भविष्य की राह: उत्पादन स्थल, लागत और बाजार पुनर्संतुलन
टैरिफ की अस्पष्ट वर्गीकरण के कारण कंपनियों को दो‑तीन बड़े सवालों का सामना करना पड़ेगा। पहला, कॉम्प्लेक्स जेनरिक और बायोसिमिलर्स को टैरिफ में कैसे रखा जाएगा? दूसरा, यदि टैरिफ लागू रह गया तो मार्जिन कमज़ोर हो जाएगा क्योंकि कंपनियों को लागत का एक बड़ा हिस्सा खुद उठाना पड़ेगा। तिसरा, सप्लाई चेन में गड़बड़ी की संभावना है, जिससे यूएस बाजार में दवाओं की कमी भी हो सकती है।
शॉर्ट‑टर्म में, कई कंपनियों ने अपने कैपेक्स प्लान को रोक दिया है। उत्पादन लागत में बढ़ोतरी, लाभ मार्जिन में संकुचन, और विदेशी संस्थागत निवेशकों के निकास ने बाजार को और तनाव में डाल दिया है। दीर्घ‑कालीन दृष्टिकोण में, कुछ कंपनियां यूएस में सीधे फैक्ट्री बनाना शुरू कर सकती हैं, जैसा कि टैरिफ में उल्लेखित छूट के तहत प्रोत्साहन मिला है। अन्य कंपनियां लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण‑पूर्व एशिया जैसे वैकल्पिक बाजारों में विस्तार करने की रणनीति बना सकती हैं।
भविष्य में अगर टैरिफ स्थायी रहा, तो भारतीय फार्मा कंपनियों को अपने पोर्टफोलियो को रिइन्हेंस करना पड़ेगा—जेनरिक और बायोसिमिलर पर अधिक फोकस, जबकि ब्रांडेड ड्रग्स की हिस्सेदारी घटानी पड़ेगी। इस बदलाव से नई R&D निवेश, क्लिनिकल ट्रायल की गति और नियामक अनुमोदन प्रक्रियाओं में तेज़ी की संभावना है।
समग्र भारतीय बाजार भी इस धक्का से कुछ हद तक प्रभावित हुआ। बड़े इंडेक्स, जिसमें आईटी भी शामिल है, लगभग 1% नीचे बंद हुए, और फॉरेन फंड्स के निकास का द्रव्यमान बढ़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक यूएस सरकार स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं देती, तब तक बाजार में अस्थिरता बनी रहेगी।