आज का पंचांग – प्रमुख तिथि, नक्षत्र और योग
1 अप्रैल 2025 (मंगलवार) को शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और पंचमी तिथियों का अद्वितीय संगम होता है। यह दिन चैतत्री नव वर्षा त्रयी के तीसरे दिन के रूप में गणना किया जाता है, जो कि आज का पंचांग पढ़ने वाले कई भक्तों के लिये विशेष महत्व रखता है। इस दिन विश्व के कई भागों में सूर्योदय 6:11 ए.एम. और सूर्यास्त 6:39 पी.एम. के आसपास देखा जाएगा, जिससे सुबह‑शाम के समय में किए जाने वाले अभिषेक और आरती भली-भांति सम्पन्न हो सकें।
तिथियों की सीमा इस प्रकार है: चतुर्थी तिथि आधी रात 2:32 ए.एम. (अप्रैल 2) तक चलती है, जिसके बाद पंचमी तिथि शुरू होती है। इस दो‑तिथि की मिलन अवधि को कई ज्योतिषी "अतिरिक्त शुभ योग" मानते हैं, क्योंकि दो अलग‑अलग तिथियों की ऊर्जा एक साथ संचित होती है।
नक्षत्र की बात करें तो बहरानी नक्षत्र 11:06 ए.एम. तक प्रभुत्व रखता है। बहरानी को शारीरिक और आध्यात्मिक नियंत्रण, साहस और दृढ़ता से जोड़ा जाता है, इसलिए इस समय में किए जाने वाले कर्म को सफल माना जाता है। 11:06 ए.एम. के बाद कृतिका नक्षत्र आता है, जो नई शुरुआत, शुद्धता और सृजनशीलता का प्रतीक है।
ग्रहों की स्थिति भी इस दिन बहुत अनुकूल है: चंद्रमा मेष राशि में 4:30 पी.एम. तक रहता है, जबकि सूर्य वृषभ राशि में रहता है। मेष में स्थित चंद्रमा साहसिक कार्यों और भाग्य के बल को बढ़ाता है, जबकि वृषभ में सूर्य स्थिरता, वित्तीय लाभ और धरातल पर ठोस कार्यों को सुदृढ़ करता है। यही कारण है कि इस दिन नया व्यवसाय शुरू करना, घर में शिल्प कार्य करना या महत्वपूर्ण शास्त्रीय अनुष्ठान करना अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।

नव वर्षा त्रयी में धार्मिक महत्व और मुहूर्त
चैतत्री नव वर्षा त्रयी का आरम्भ 30 मार्च, 2025 से हुआ था और यह आज के तीसरे दिन पर पहुँच गया है। इस अवधि में विशेष रूप से दो प्रमुख देवियों की पूजा की जाती है: कुछ पंथों में माँ चंद्रघंटा को समर्पित प्रार्थना होती है, जबकि अन्य समुदाय माँ कुशमंदा के नाम का उच्चारण करते हैं। दोनों ही देवी शौर्य, सौहार्द्र और समृद्धि के प्रतीक हैं। इस कारण से कई मंदिरों में इस दिन विशेष महादान, कथा और भजन‑कीर्तन आयोजित होते हैं।
दुर्लभ रूप से, इस दिन मासिक कर्तिकाई (मासिक कर्तिगाई) और विनायक चतुर्थी (गणपति चतुर्थी) दोनों ही त्यौहार एक साथ मनाए जाते हैं। कर्तिकाई का अर्थ है दिव्य प्रकाश का उत्सव, जबकि गणपति चतुर्थी में भगवान गणेश की आराधना की जाती है। ऐसा दो‑त्योहारों का समागम भक्तों को दो गुना श्रद्धा और ऊर्जा प्रदान करता है।
भक्तों को किन बातों पर ध्यान देना चाहिए? नीचे एक सरल चेकलिस्ट दी गई है:
- सूर्योदय के बाद 6:30 ए.एम. से 8:00 ए.एम. तक बहरानी नक्षत्र में शास्त्रीय पूजा एवं स्नान करना अत्यंत फलदायी रहता है।
- पवित्र जल में पाँच बार स्नान करके सुबह 9:30 ए.एम. तक चंद्रमा के प्रकाश में मंत्र जाप करें।
- अगर कोई नया कार्य शुरू करना है, तो उसे मेष में स्थित चंद्रमा की स्थिति से पहले 3:00 पी.एम. तक न करें; 4:30 पी.एम. के बाद शुरू करना अधिक लाभकारी रहेगा।
- रात के समय 7:00 पी.एम. से 9:30 पी.एम. तक कृतिका नक्षत्र के प्रभाव में विशेष अभिषेक और दान‑परोपकार करें।
इस दिन के मुहूर्त को देखते हुए, कई लोग आध्यात्मिक रीतियों को अधिक समय देकर, योग और ध्यान को लंबा करते हैं। विशेषकर बहरानी नक्षत्र के पहले घंटे में नयी अध्ययन‑योजना या स्वास्थ्य‑परिकल्पना बनाना फायदेमंद साबित होता है। साथ ही, कुछ वैदिक चिकित्सक इस दिन के बाद के समय को आयुर्वेदिक उपचारों के लिये आदर्श मानते हैं।
समग्र दृष्टिकोण से कहा जा सकता है कि 1 अप्रैल 2025 का पंचांग न केवल तिथियों का मेल है, बल्कि यह एक संपूर्ण ऊर्जा‑संयोजन है। चतुर्थी‑पंचमी संगम, बहरानी‑कृतिका नक्षत्र परिवर्तन और मेष‑वृषभ ग्रह स्थिति इस दिन को आध्यात्मिक कार्यों, सामाजिक साझेदारी और व्यावसायिक आरम्भ के लिये अत्यंत शुभ बनाते हैं। इस योजना के अनुसार अपने दैनिक कार्यक्रम को व्यवस्थित करने से आप नयी ऊर्जा और सफलता का अनुभव करेंगे।