जब बात छठ पूजा, भूजिया राज्य बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला प्रमुख सूर्योदय‑सूर्यास्त का धार्मिक पर्व है. इसे अक्सर छठ कहा जाता है, तो चलिए जानते हैं इसकी असली भावना। इस पूजा का केंद्र सूर्य, प्रकाश और शक्ति का प्रतीक है, और साथ ही लक्ष्मी, सम्पन्नता और कल्याण की देवी के अनुग्रह से जुड़ा है। बिहार, छठ का मूलभूत प्रबंधन और संस्कृति का अभ्युदय स्थल में इस त्योहार की विशिष्ट रीति‑रिवाज़ पूरे राज्य में देखी जाती हैं।
छठ पूजा छठ पूजा 2025 में दो प्रमुख दिन होते हैं – स्नान दिवस और घाट पर आरती। स्नान दिवस में व्रती शरद ऋतु के अंत में नदियों या तालाबों में शुद्ध जल से स्नान करते हैं, जिससे शरीर‑मन शुद्ध होता है। स्नान के बाद चौथा‑पाँचवाँ दिन कड़ी व्रत रखते हुए सूर्य के उगते हुए अर्घ्य देते हैं। यह क्रम "सूर्य उगना – अर्घ्य – सूर्य अस्त – अर्घ्य" के रूप में प्रदर्शित होता है, जो छठ पूजा को "सूर्य की आराधना" बनाता है।
व्रत में पानी, भोजन और बर्तन का पूरी तरह से परित्याग शामिल है। व्रती को केवल जल ही पीना अनुमति है, और यह जल शुद्ध जल स्रोत से होना चाहिए। इस कड़ी व्रत के साथ ही "पर्याप्त शारीरिक व्यायाम" नहीं किया जाता, जिससे शरीर की ऊर्जा सूर्य की शक्ति पर केन्द्रित रहती है। व्रत समाप्ति के बाद पहली बार अन्न के रूप में केका (भुजिया के शक्कर‑की‑बेस्ड मिठाई) और सरसों के तेल में तले हुए परनथी खाए जाते हैं, जो व्रती को शक्ति पुनः प्रदान करते हैं।
छठ पूजा में आठवां घण्टे के दौरान गिटार वाले भजन और सूर्य गीत गाए जाते हैं, जो पूरे घाट को भक्तिमय माहौल से भर देते हैं। इन गीतों में "बाबा नमो नमः" और "भूजिया रे" जैसे दोहराए जाने वाले शब्द मुख्य होते हैं, जो सूर्य के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। यह संगीतात्मक परिप्रेक्ष्य धार्मिक संगीत की महत्ता को दर्शाता है, क्योंकि यह आरती के साथ सामंजस्य स्थापित करता है।
छठ पूजा 2025 में प्रमुख स्थल गौलसेन, कटिहार, अधिमहिल और पटना जैसे जिलों में हैं। इन जगहों पर स्थानीय प्रशासन द्वारा विशेष प्रकार की स्वच्छता व्यवस्था की जाती है, जिससे भीड़भाड़ के समय भी स्वास्थ्य जोखिम कम रहता है। साथ ही, घाट पर स्थापित पवित्र जल टैंक व्रती को शुद्ध जल प्रदान करने के लिए स्थापित किये जाते हैं, जो इस पर्व के पर्यावरणीय जागरूकता पहल को दर्शाते हैं।
पुराणों के अनुसार, सूर्य देवता की पूजा से शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और लोगों की आयु लम्बी होती है। इसलिए, छठ पूजा को केवल एक सामाजिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक स्वास्थ्य लाभ वाला अभ्यास माना जाता है। इस अवधारणा को आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान द्वारा भी समर्थन मिलता है, क्योंकि सूर्य का विटामिन‑डी उत्पादन पर सीधा प्रभाव है।
छठ पूजा का इतिहास प्राचीन मिथिला क्षेत्र से शुरू होता है, जहाँ सबसे पहले आस्था‑पूर्वक सूर्य की आराधना हुई थी। समय के साथ यह प्रथा उत्तर प्रदेश, झारखंड और अन्य बिहार‑प्रकाशित क्षेत्रों में फैल गई। आज भी इस पर्व को "मधुशाला" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि सूर्य की मीठी रोशनी से जीवन में कर्मकुशलता आती है। इस प्रकार ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू एक साथ जुड़ते हुए आज के युवा वर्ग में भी लोकप्रियता बनाते हैं।
छठ पूजा 2025 में मुख्य तिथि श्रावण महीने की शुक्ल तृतीया और चतुर्दशी पर पड़ती है, जो इस साल 8 और 9 अक्टूबर को गिरती है। इस दो‑दिन के पावन अवसर पर लोग अपने घरों में लकड़ी की आटे से बनी पान और फलों का प्रसाद तैयार करते हैं, जिससे त्योहारी माहौल में मिठास आती है। जलवायु परिवर्तन के कारण अब कई घाटों पर जल स्तर में गिरावट दिखी है, इसलिए स्थानीय लोग जल संरक्षण के लिए प्लास्टिक‑मुक्त आयोजन को प्राथमिकता दे रहे हैं।
आपको आगे क्या मिलेगा? नीचे की लिस्ट में छठ पूजा 2025 से जुड़ी तिथियों, व्रत नियमों, मुख्य गीते, और हरिद्वार के लोकप्रिय आयोजन की विस्तृत जानकारी होगी। हम प्रत्येक लेख में विश्वसनीय स्रोतों का हवाला देते हुए व्यावहारिक सलाह भी शामिल करेंगे, ताकि आप इस पावन अवसर को पूरी तरह से समझ सकें और अपनाएं। तैयार हो जाइए, क्योंकि इस पृष्ठ पर आपके लिए व्यापक जानकारी का खजाना है, जो आपके छठ पूजा अनुभव को और भी समृद्ध करेगा।
छठ पूजा 2025, 25‑28 अक्टूबर, नहाय‑खाय से उषा अर्घ्य तक, बिहार‑नेपाल में सूर्य देव को समर्पित चार‑दिन का पवित्र उत्सव।
©2025 iipt.co.in. सर्वाधिकार सुरक्षित