विदेश मंत्री का कूटनीतिक प्रतितक्रिया
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक हालिया घटना के दौरान एक ऐसी स्थिति का अनुभव किया जहाँ उनका जवाब सुनकर उपस्थित जनसमूह मुस्कुरा उठा। उनसे पूछा गया कि कहीं उन्हें किम जोंग-उन या जॉर्ज सोरोस के साथ डिनर पर आमंत्रित किया जाए, तो वे किसे चुनेंगे। यह सवाल राजनीतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील था, लेकिन जयशंकर ने इस कठिनाई का सामना अपने चतुर उत्तर से किया, "मेरा तो नवरात्रि का उपवास चल रहा है।" उनकी यह प्रतिक्रिया बुद्धिमानी और सहजता का परिचायक थी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वह कैसे राजनीति के संवेदनशील मुद्दों को हल करना जानते हैं।
नवरात्रि: एक धार्मिक पर्व और महत्व
जयशंकर का जवाब केवल एक धार्मिक आयोजन की ओर ही नहीं इशारा करता था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे व्यक्तिगत आस्थाएँ भी राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। नवरात्रि भारत में अत्यधिक धार्मिक महत्व का पर्व है, जिसमें लोग अपने धर्म और आस्थाओं के प्रति पूरी श्रद्धा के साथ उपवास करते हैं और माँ दुर्गा की पूजा करते हैं। इस उत्तर के माध्यम से उन्होंने कहीं यह संदेश देने का भी प्रयास किया कि उनके मूल्यों और आस्थाओं का सम्मान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारतीय राजनीति और जॉर्ज सोरोस
वर्तमान भारतीय राजनीति में जॉर्ज सोरोस का नाम अक्सर चर्चा में आता रहता है। बीजेपी ने विपक्षी दल कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि उनकी वैश्विक वित्तीय समर्थक, सोरोस द्वारा मौजूदा सरकार को अस्थिर करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। सोरोस पीएम नरेंद्र मोदी के मुखर आलोचक रहे हैं और इस कारण भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में उनकी विभाजनकारी छवि बन गई है। इस विषय में पूछे गए प्रश्न पर जयशंकर का कुशलतादायक जवाब उनकी सूझबूझ को दर्शाता है।
किम जोंग-उन: एक वैश्विक चुनौती
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन वैश्विक मंच पर एक चिंताजनक भूमिका निभाते हैं। उनके द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण और वैश्विक शांति को दी गई कई चुनौतियाँ सभी के लिए गहन चर्चा का विषय रही हैं। ऐसे सवाल के जवाब में जयशंकर जैसे अनुभवी राजनेता का बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर यह दर्शाता है कि वह कैसे अपनी भावी स्थिति और वैश्विक मुद्दों को सम्मानजनक तरह से प्रबंधित कर सकते हैं।
भारत की राजनयिक धुर्तता
अब जब भारत की विदेश नीति कई महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण आयामों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, तो जयशंकर का इस प्रकार का व्यवहार उनकी कूटनीतिक क्षमता का एक और उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारत की विदेश नीति के तहत उन्होंने विभिन्न वैश्विक नेताओं के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है, और ऐसे प्रश्नों का जवाब जो कभी-कभी असुविधाजनक भी हो सकते हैं, उन्हें आसानी से तटस्थ शैली में हल करना उनकी एक विशिष्ट विशेषता बन गई है।
6 टिप्पणियाँ
Ashish Pundir
नवरात्रि के उपवास को राजनीति के प्रश्नों से जोड़ना उचित नहीं है।
gaurav rawat
समज्हा जाता है कि हर एक सवाल का जवाब देना जरूरी है 😊
परन्तु आपका उत्तर बहुत ही समझदार और ढीला है 😄
इसे आगे भी ऐसे ही रखिए!
Vakiya dinesh Bharvad
धर्म और राजनीति का संतुलन हमारे समाज की खूबसूरती है :)
जयशंकर जी का विचार बिंदु सही दिक्तक को दर्शाता है
Aryan Chouhan
भाईयो और बहनो, इस पोस्ट को पढ़ते ही दिमाग में कई बाते चल पड़ीं।
पहले तो मैं सोचा था कि यहाँ कोई हल्का-फुल्का मज़ाक होगा, पर नहीं।
जैसे कि नारायणा ने कहा, "उपवास का क्या असर"।
यह बात तो बिल्कुल सही थी क्योंकि उपवास का असर सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक भी होता है।
तो फिर क्यों नहीं इसको राजनैतिक सवालों के साथ मिलाया गया?
सिर्फ यही नहीं, यहाँ किम जोंग‑उन और जॉर्ज सोरोस का भी जिक्र है, जो दोनों ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग‑अलग इमेज रखते हैं।
किम की बात करें तो उनके अणविक प्रयोगों से दुनिया में तनाव बढ़ता है, और सोरोस की बात करें तो वह अक्सर आर्थिक बाजार में हिलचल करते रहे हैं।
अब सोचिए, अगर एक राजनेता को इन दोनों में से किसी के साथ डिनर करवाया जाए तो क्या होगा?
वह न केवल अपने मतदाताओं का भरोसा खो सकता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में भी उलटफेर हो सकता है।
यहाँ तक कि नवरात्रि के उपवास का भी राजनीतिक संदर्भ में उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि उपवास से व्यक्ति की इरादे और ध्येय साफ होते हैं।
समय के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि राजनीति में हर छोटी‑छोटी बात को बड़े मंच पर ले जाया जाता है।
एक साधारण सवाल भी कई स्तरों पर चर्चा का कारण बन जाता है।
इसलिए मैं कहूँगा कि इस पोस्ट ने मेरी सोच को बहुत विस्तृत कर दिया, और मैं आशा करता हूँ कि आगे भी ऐसे विचारशील सवालों का सामना होगा।
धन्यवाद!
Tsering Bhutia
जयशंकर जी का नवरात्रि उपवास का उल्लेख एक गहरी समझ दर्शाता है।
उपवास से शरीर में शुद्धि आती है और मन को स्थिरता मिलती है, जो निर्णय लेने में मदद करता है।
ऐसे समय में राजनीतिक प्रश्नों का जवाब देना आसान नहीं होता, पर यह दर्शाता है कि वह अपने आस्थाओं के साथ दृढ़ हैं।
इस तरह की स्थिरता नीति निर्माण में भरोसा बनाती है और जनता में विश्वास बढ़ाती है।
आशा है कि भविष्य में ऐसे अधिक उदाहरण हमें मिलते रहें।
Narayan TT
भ्रामक बहानों से बचो।
सचेत रहो, नहीं तो भ्रम में ही रह जाओगे।
विचार को स्पष्ट करो, नहीं तो विचारहीन रहोगे।