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जम्मू-कश्मीर के शोपियां एनकाउंटर में तीन लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी ढेर, पहलगाम हमले से जुड़े तार तलाश रही एजेंसियां

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जम्मू-कश्मीर के शोपियां एनकाउंटर में तीन लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी ढेर, पहलगाम हमले से जुड़े तार तलाश रही एजेंसियां
  • मई, 14 2025
  • के द्वारा प्रकाशित किया गया Divya B

शोपियां की घने जंगलों में चला घंटों ऑपरेशन

जम्मू-कश्मीर के दक्षिणी जिले शोपियां के शुकरू केलर इलाके में 13 मई 2025 को आतंकवाद के खिलाफ बड़ी कार्रवाई हुई। सुरक्षाबलों और लश्कर-ए-तैयबा के बीच हुई मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए। मारे गए आतंकियों में टीआरएफ का ऑपरेशनल कमांडर शाहिद कुट्टे और आदनान शफी खास नाम हैं, जिन्हें सुरक्षाबल लंबे वक्त से तलाश रहे थे।

शोपियां में यह कार्रवाई तब की गई, जब खास खुफिया इनपुट से पता चला था कि घने जंगलों में कुछ आतंकवादियों की मौजूदगी है। सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मिलकर 'ऑपरेशन केलर' नाम से अभियान शुरू किया। जैसे ही सुरक्षा बल इलाके में पहुंचे, जंगल की चुप्पी गोलियों की आवाज से टूट गई। करीब तीन घंटे तक दोनों ओर से गोलीबारी चली, जिसमें तीनों आतंकियों को मार गिराया गया।

पहलगाम हमला और बढ़ा दबाव

इस कार्रवाई को बीते महीने पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले से जोड़कर देखा जा रहा है। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में जानलेवा हमला हुआ था, जिसमें 26 लोग मारे गए और कई घायल हो गए थे। इस हमले के बाद दक्षिण कश्मीर के कई इलाकों में सुरक्षा और अलर्ट हाई लेवल पर है। हमले की जांच के सिलसिले में पुलिस ने तीन लश्कर आतंकियों की तस्वीरें और पहचान उजागर की थी। साथ ही, पकड़वाने वाले को 20 लाख रुपए का इनाम घोषित किया गया। इन पोस्टरों को पुलवामा समेत कई जगहों पर चिपकाया भी गया।

फिलहाल जांच एजेंसियां पता लगाने में जुटीं हैं कि शोपियां के जंगलों में मारे गए लश्कर के आतंकी पहलगाम हमले की साजिश में किस हद तक शामिल थे। सुरक्षा बलों की रणनीति अब भी आक्रामक है। लगातार जंगलों की तलाशी ली जा रही है, ताकि बाकी बचे आतंकी भी पकड़ में आ जाएं या उनका सफाया हो सके।

इस पूरे अभियान से साफ है कि दक्षिण कश्मीर में आतंकियों के नेटवर्क को तोड़ने की कोशिश और तेज हो गई है। ऊपरी इलाकों के जंगल और बसे गांव अब भी सुरक्षाबलों के फोकस में हैं, क्योंकि हालिया घटनाओं के बाद साफ हो गया है कि आतंकी फिर से संगठित होने की कोशिश में हैं। लेकिन बार-बार की ताबड़तोड़ कार्रवाई से सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकियों के हौसले पस्त कर दिए हैं।

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Divya B
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Divya B

11 टिप्पणियाँ

nihal bagwan

nihal bagwan

शोपिया में हुई ये मुठभेड़ सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अभिज्ञान की पुकार है। सुरक्षा बलों की दृढ़ता ने उस अंधेरे को उजागर किया जहाँ लश्कर‑ए‑तैयबा अपना जाल बुनता था। ऐसे कार्यों से ही जम्मू‑कश्मीर की स्वाधीनता की धरती फिर से शुद्ध हो सकती है। हमें चाहिए इस साहसिक कदम को राष्ट्र के सर्वांगीण सुरक्षा के उदाहरण के रूप में कायम रखना।

Arjun Sharma

Arjun Sharma

भाई सुनो, इस ऑपरेशन को ‘ऑपर्सनल एक्सट्रिम’ कहके भी बियॉन्ड टेक्नोलॉजी समझा जा सकता है। इधर‑उधर का इंटेल इन्पुट और सिग्नल में थोडी गड़बड़ थी पर फॉर्मेशन ट्यूनिंग ने सही पाथ सेट कर दिया। डिटेल में बात करे तो टैक्टिकल एंगेजमेंट बिच फॉरेंसिक इकीप्स का रोल बड़ा था।

Sanjit Mondal

Sanjit Mondal

इस कार्रवाई से स्पष्ट है कि सुरक्षा एजेंसियों ने सामूहिक विश्लेषण एवं समन्वित रणनीति अपनाई है। शोपिया के घने जंगलों में सूचना संग्रहण व खोज‑बीन कार्य अत्यधिक प्रभावी रहा। इस संदर्भ में स्थानीय जनसंख्या के सहयोग को भी सराहना योग्य माना जाता है। 🙂 

Ajit Navraj Hans

Ajit Navraj Hans

तो फिर बताओ ये टैक्टिकल एंगेजमेंट कैसे चलती है? फॉरेंसिक इकीप्स ने क्यूँ जल्दी पहचान ली? लगता है ऑपरेशन की प्लानिंग पहले से ही टॉप लेवल पर थी।

arjun jowo

arjun jowo

बहुत information मिली, धन्यवाद! ये ऑपरेशन वास्तव में सुरक्षा को मजबूत करता है। आशा है आगे भी ऐसी कार्रवाइयाँ हों।

Rajan Jayswal

Rajan Jayswal

जंगलें अब डरावनी नहीं रह गईं, सफ़र में नई रोशनी दिखी।

Simi Joseph

Simi Joseph

भारी झंझट है।

Vaneesha Krishnan

Vaneesha Krishnan

समझता हूँ आपके भाव, ऐसे समय में दिल भी थक जाता है 😔 लेकिन उम्मीद है कि सुरक्षा की इस लहर से गाँव‑गांव में शांति आएगी। ✨

Satya Pal

Satya Pal

हां, बवख़ुश का इन्फॉर्मेशन और एंटी‑टेररर ट्रैनिंग सही दिशा में ले जा रही है। पर अभी भी कुछ गपशप है जो सच को धुंधला कर देती है।

Partho Roy

Partho Roy

शोपिया की इस घटना को केवल एक सैन्य सफलता मानना बहुत छोटा विचार होगा।
यह एक सामाजिक संवाद का आरंभिक बिंदु बनता है।
जब तक गांव वाले अपनी पीड़ा को आवाज़ नहीं देते, सुरक्षा केवल एक अस्थायी समाधान ही रह जाएगा।
जंगल की गहराई में छिपे अंधेरे को केवल गोलीबारी से नहीं, बल्कि शिक्षा और रोजगार के अवसरों से दूर किया जा सकता है।
इतिहास ने बार-बार दिखाया है कि निवारक उपायों की कमी से ही उग्रता पनपती है।
इसलिए अब समय है कि सरकार न केवल ऑपरेशन के बाद बल्कि उसके पहले भी रणनीति बनाये।
स्थानीय समुदाय को शामिल करना, उनके नेताओं को सुनना और समस्याओं को मूल रूप से हल करना आवश्यक है।
सुरक्षा बलों की तत्परता तो सराहनीय है, पर अगर वही क्षेत्र बार-बार उबड़-खाबड़ रहता है तो हम फिर से वही चक्र देखेंगे।
व्यापक विकास योजनाओं को जंगल के किनारे तक ले जाना चाहिए।
सड़कों की मरम्मत, बिजली की आपूर्ति, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार ये सब बुनियादी अधिकार हैं।
जब तक ये सब नहीं होगा, तो आतंकवादी फिर से छुपने के नए रास्ते खोज लेंगे।
अंत में यह कहा जा सकता है कि एक मात्र लड़ाई नहीं, बल्कि एक विस्तृत सामाजिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता है।
हम सबको मिलकर इस पुनर्निर्माण में योगदान देना चाहिए।
नहीं तो शोपिया का जंगल फिर से अंधेरे का घर बन जाएगा।
और यही वह स्याही है जिसे हम अपनी पुस्तिका में नहीं लिखना चाहते।
समय की मांग है कि हम सभी मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ायें।

Ahmad Dala

Ahmad Dala

बहुतेरे बिंदुओं पर आप सही कह रहे हैं, पर कुछ लोग सिर्फ सतह पर ही दूनिया देख लेते हैं। यह चर्चा हमें आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी है, धन्यवाद!

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