पिक्सार की मशहूर फिल्म 'इनसाइड आउट' के दूसरे भाग में दर्शकों को एक नया रोमांच अनुभव होने वाला है। इस बार 13 वर्षीय राइली के मस्तिष्क में ऐसी भावनाएं प्रवेश कर चुकी हैं जिन्हें अकसर नकारात्मक माना जाता है। फिल्म में अब राइली की मानसिक स्थिति को ईर्ष्या, शर्म, ऊब और चिंता जैसी भावनाएं नियंत्रित कर रही हैं। इन भावनाओं के प्रवेश से राइली की कहानी और भी पेचीदी हो जाती है।
कुरेद मुस्कान और ईर्ष्या का आगमन
डॉ. दाचर केल्टनर, जो इस फिल्म के न्यूरोसाइंस कंसल्टेंट हैं, ने इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका मानना है कि ये नए भाव वास्तविक जीवन में भी किशोरों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, ईर्ष्या, जिसे फिल्म में एक छोटी, एक्वामरीन रंग की पात्र के रूप में दिखाया गया है, एक ऐसी भावना है जो तब उत्पन्न होती है जब कोई किसी दूसरी चीज़ या व्यक्ति को चाहता है जिसे उसके पास नहीं है। शोध से पता चलता है कि ईर्ष्या के दो रूप होते हैं: विध्वंसक और शुभ। शुभ ईर्ष्या एक सकारात्मक प्रेरक हो सकती है।
शर्म का चेहरा और सामाजिक नॉर्म्स
शर्म, एक चमकदार लाल पात्र के रूप में दर्शाई गई है, सामाजिक बातचीत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सामाजिक नॉर्म्स और क्षमा को सुनिश्चित करती है। जब कोई व्यक्ति किसी प्रयास या परिस्थिति में असफल होता है या गलती करता है, तो शर्म की भावना उसे खुद को और समाज को सुधारने की प्रेरणा देती है। इसका प्रभाव हमारे सामाजिक जीवन में अति महत्वपूर्ण है।
ऊब का असर और रचनात्मकता
ऊब, जिसे अंग्रेजी में 'Ennui' कहा जाता है, इस फिल्म में एक कैजुअल और आरामदायक पात्र के रूप में दिखाया गया है। ऊब की भावना रचनात्मकता और आत्मनिरीक्षण को प्रोत्साहित करती है। जब मानसिक स्थिति सुस्त हो जाती है, तो यह नई और सरल सोच की उत्पत्ति को बढ़ावा देती है। ऊब एक तरह से हमारे मस्तिष्क को नये विचारों और विकल्पों की खोज के लिए पेश करती है।
चिंता: भविष्य की संज्ञा
चिंता, एक परेशान और अस्त-व्यस्त पात्र के रूप में दिखाई गई है, जिसके द्वारा संभावित खतरों के प्रति जागरूकता और उनसे निपटने की तैयारी सिखाई जाती है। यह यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि तात्कालिक और संभावित संकटों का सामना सही तरीके से किया जाए।
भविष्य के भाव और नई आवाजें
इस फिल्म के आवाज़ी कलाकारों में आयो एडीबिरि, पॉल वाल्टर हाउसर, अडेल एक्सार्कोपुलोस और माया हॉक शामिल हैं। केल्टनर ने 'बुरी' भावनाओं के महत्व को भी रेखांकित किया और बताया कि ये भाव किस प्रकार किशोरों में विकास की प्रक्रिया को संचालित करते हैं। भविष्य की फिल्मों में और भी भावनाओं का अस्तित्व हो सकता है जैसे नाराजगी, विस्मय, इच्छा और करुणा।
पिक्सार की इस नई प्रस्तुति ने दर्शकों के बीच एक नई सोच को जन्म दिया है। यह फिल्म न सिर्फ मनोरंजन बल्कि किशोर मस्तिष्क और उनकी भावनाओं के वैज्ञानिक आधार को भी विस्तार से समझाने का प्रयास करती है।
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