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चुनाव आयोग के नए प्रमुख ज्ञानेश कुमार और 2029 के चुनावों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका

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चुनाव आयोग के नए प्रमुख ज्ञानेश कुमार और 2029 के चुनावों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका
  • फ़र॰, 18 2025
  • के द्वारा प्रकाशित किया गया Divya B

ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति और उनकी भूमिका

भारत के नए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार, 1988 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं, जिन्हें एक नए चयन प्रक्रिया के माध्यम से चुना गया है। उनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक है और उनके नेतृत्व में 2029 के लोकसभा चुनाव, 20 विधानसभा चुनाव और 2027 के राष्ट्रपति/उप-राष्ट्रपति चुनाव संपन्न होंगे।

ज्ञानेश कुमार ने आईआईटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पर्यावरण अर्थशास्त्र का अध्ययन किया है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण सरकारी भूमिकाएं निभाई हैं, विशेष रूप से 2019 में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरसन के दौरान गृह मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के रूप में। इसके अलावा, उन्होंने राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

नियुक्ति प्रक्रिया और विवाद

नियुक्ति प्रक्रिया और विवाद

उनकी नियुक्ति एक तीन-सदस्यीय समिति द्वारा की गई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और विपक्ष के नेता राहुल गांधी शामिल थे। यह नियुक्ति 2023 के एक नए कानून के तहत हुई है, जो पूर्व की चयन प्रक्रिया को बदलता है। इस नए कानून ने कांग्रेस का विरोध झेला, जो इसे निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के लिए खतरा मानती है।

राहुल गांधी ने इस चयन प्रक्रिया के खिलाफ असहमति जताई, इसे राजनीतिक पक्षपातपूर्ण कहा, और सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की संवैधानिकता पर सुनवाई तक नियुक्ति को स्थगित करने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट में नए कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर की गई हैं, जो भविष्य में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों पर असर डाल सकती हैं।

आगामी वर्षो में, ज्ञानेश कुमार का दायित्व महत्वपूर्ण चुनावों को सुचारू रूप से संपन्न करवाना है, जैसे कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव, 2026 के विधानसभा चुनाव (केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पुदुचेरी) और 2029 के लोकसभा चुनाव।

टैग: ज्ञानेश कुमार मुख्य चुनाव आयुक्त 2029 लोकसभा चुनाव सुप्रीम कोर्ट
Divya B
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Divya B

6 टिप्पणियाँ

Vidyut Bhasin

Vidyut Bhasin

ओह, कितनी आश्चर्यजनक बात है कि एक अनुभवी I.A.S. अधिकारी को चुनाव आयोग का प्रमुख बना दिया गया है, जबकि लोकतंत्र को किसी इंजीनियर की आवश्यकता नहीं होती।
क्या हमें हर बार एक नया दार्शनिक चाहिए जो पवित्र कागज़ों पर ही नहीं, बल्कि इन राजनैतिक खेलों में भी विशेषज्ञ हो?
जैसे ही हम इस नियुक्ति को देखते हैं, हमें याद आता है कि सत्ता का खेल हमेशा ही एक बड़ा प्रयोगशाला होता है।
कौन कहता है कि एक व्यावसायिक इंजीनियर को सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को समझना पड़ेगा?
संकुचित समय में हम सभी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया गया है कि क्या यह निर्णय जनता के हित में है या सिर्फ एक अदृश्य हाथ की चाल है।
भले ही ज्ञानेश कुमार ने हार्वर्ड से पर्यावरण अर्थशास्त्र में पढ़ाई की हो, लेकिन क्या वह चुनावों की जटिलताओं को संभाल पाएंगे?
नवाचारी चयन प्रक्रिया का दावा किया गया, पर वास्तव में यह प्रक्रिया कितना नवाचारी है?
कांग्रेस की असहमति को सुनते ही हमें याद आता है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कभी-कभी सत्य को उजागर करती है।
राहुल गांधी की आपत्ति को हम शाब्दिक रूप से एक वाक्पटु विरोध के रूप में देख सकते हैं, या फिर यह एक रणनीतिक चाल है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में संभावित परिणामों को लेकर हमारे दिमाग में कई परिदृश्य उभरते हैं।
क्या यह नया कानून वास्तव में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है, यह प्रश्न आज के लोकतांत्रिक परिदृश्य में केंद्र बिंदु है।
यदि हम भविष्य की सोचें तो 2029 के लोकसभा चुनाव में ज्ञानेश कुमार की भूमिका कितनी निर्णायक होगी, यह एक बड़ा सवाल है।
ऐसे समय में जब कई राज्य चुनाव निकट हैं, उनका प्रबंधन एक बड़ी बाधा बन सकता है या फिर एक अवसर।
जब तक चुनाव प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता नहीं आती, तब तक हम सच्चे लोकतंत्र की परछाई देख सकते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि जनता को इस प्रक्रिया में अपने अधिकारों की याद दिलानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी शक्ति दुरुपयोग न करे।

nihal bagwan

nihal bagwan

हमारा देश अपना भविष्य ऐसे ही बनाएगा, जहाँ हर नियुक्ति राष्ट्रीय हित में हो।

Arjun Sharma

Arjun Sharma

भाई लोग, इस whole process में काफी head‑feeling लग रही है, KPI और SOP का क्या मतलब है, सब गड़बड़ है।
जैसे हर बार कोई नया jargon फेंका जाता है, हमें बस वही समझना पड़ता है कि कौन सी policy ने हमे वास्तव में benefit दिया।
और हाँ, इस सिस्टम में stakeholder management को फिर से define करना पड़ेगा, नहीं तो chaos ही बाकी रहेगा।

Sanjit Mondal

Sanjit Mondal

सभी को नमस्कार, आपके द्वारा उठाए गए मुद्दों को देखते हुए मैं यह बताना चाहूँगा कि चयन प्रक्रिया के कानूनी पहलुओं पर विस्तृत विश्लेषण उपलब्ध है 😊।
प्रथम, स्थापित विधायी प्रावधानों के तहत इस नियुक्ति का वैधता पर प्रश्न नहीं उठता, बशर्ते सभी पारदर्शी कदम उठाए जाएँ।
द्वितीय, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद यदि कोई संशोधन आवश्यक हो तो वह तत्काल लागू किया जाना चाहिए, जिससे प्रबंधन में कोई बाधा न आए।
तीसरा, निरंतर निगरानी एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु स्वतंत्र ऑडिट आवश्यक है, जिससे जनता का भरोसा बना रहे।

Ajit Navraj Hans

Ajit Navraj Hans

देखो भाई, यार ये बात तो साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट का role तय करना ज़रूरी है वरना chaos होगा।

arjun jowo

arjun jowo

चलो, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि चुनाव निष्पक्ष हों और लोकतंत्र मजबूत हो।

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